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________________ नयस्वरूप. बाची है अतः कारणात् यह शब्दनय घटरूप चेष्टा करते हुवे को ही घट मानता है और ऋजुसूत्र नय चारनिक्षेपसंयुक्त को घट मानता है. शब्दनय भावघट को घटमानता है इतनी विशेषता है की शब्द के अर्थ की जहां व्युत्पत्ति हो उसी को वस्तुपने कहे अर्थात् अजुसूत्रनय सामान्य घट की गवेषणा की और शब्दनय सद्भाव बो अस्तिधर्म तथा असद्भाव जो नास्तिधर्म इनसबसे संयुक्त वस्तु को वस्तुरूप मानता है। तथा वस्तु के शब्द उच्चार को सात भांगोंसे प्रतिपादन करना चाहिये. इस लिये सप्तभंगी के जितने भेद होते हैं उतने भेद शब्दनय के भी समझ लेना । सप्तभंगी का स्वरूप पूर्व कह चुके हैं । वह शब्दनय वस्तु के पर्याय को अवलम्बन करके उसके भाव धर्म का ग्राहक है. इसलिये शब्दनयमें वस्तु के भावधर्म-निक्षेप की मुख्यता है. और पूर्व के चार नयों में नामादि तीन निक्षेप की मुख्यता है । इति शब्दनय स्वरूप । गाथा ॥ जं जं सगं, भासइ तं तं चिय समभिरोहइ जम्हा ॥ समंतगत्थविमुहो, तो नो समभिरुढोति ॥१॥ यां यां संज्ञां घटादिलक्षणां भाषते वदति तां तामेव यस्मात्संज्ञान्तरार्थविमुखः समभिरूढोनयः नानार्थनामा एव भाषते यदि एकपर्यायमपेक्ष्य सर्वपर्यायवाचकत्वं तथा एकपर्यायाणां . सङ्करः पर्यायसङ्करे च वस्तुसङ्करो भवत्येवेति मा भूत्संकरदोषा, . अतः पर्यायान्तरानपेक्ष एव, समभिरूढनयः इति ॥
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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