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________________ नयाधिकार. पर्यायाः षोढा द्रव्यपर्याया (१) असंख्येयप्रदेशसिद्धत्वादयः । (२) द्रव्यव्यञ्जनपर्यायाः द्रव्याणां विशेषगुणाश्चेतनादयश्चलनसहकारादयश्च, (३) गुणपर्यायाः गुणाविभागादयः (४) गुणव्यञ्जनपर्यायाः ज्ञायकादयः कार्यरूपाः मतिज्ञानादयः ज्ञानस्य, चक्षुदर्शनादयो दर्शनस्य, क्षमामाईवादयः चारित्रस्य, वर्णगन्धस्पर्शादयो मूर्तस्य इत्यादि (५) स्वभावपर्यायाः अगुरूलघुविकाराः ते च द्वादशप्रकाराः षट् गुण हानिवृद्धिरूपाः अवाग्गोचराः एते पञ्चपर्यायाः सर्वद्रव्येषु (६) विभावपर्यायाः जीवे नरनारकादयः।। पुद्गलेद्वयणुकतोऽनन्ताणुकपर्यन्तास्कन्धाः। अर्थ-अब नयाधिकार कहते हैं; नयके मुख्य दो भेद हैं; (१) द्रव्यास्ति ( २ ) पर्यायास्ति जिस में द्रव्यास्तिनय के दो भेद ( १ ) शुद्ध द्रव्यास्ति, (२.) अशुद्ध द्रव्यास्ति देवसेन कृत पद्धति में द्रव्यास्ति के दश भेद किये हैं. वे सब दो भेदो में समावेस होते हैं. और सामान्य स्वभाव में उन का समावेस हो गया हैं. इस लिये यहां वरणन नहीं करते आगे देख लेना। . पर्यायास्तिक नय के छे भेद हैं. ( १ ) द्रव्य में एकत्वपने रहे हुवे जीवादि के असंख्यात प्रदेश तथा आकाश के अनन्त प्रदेश इनको द्रव्य पर्याय कहते हैं. और सिद्धत्व, अखण्डत्वादि
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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