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नयचक्रसार हि० अ०
सिद्धक्षेत्रमें रहे हुवे सादिअनन्त कालपने समस्तप्रदेश से स्थिर हैं.
और संसारी जीवों के आठ रुचकप्रदेश सर्वदा स्थिर है. वे आठों प्रदेश निरावरण हैं. श्री आचाराङ्गकी शेलाङ्गाचार्य कृत टीकामें लोकविजय अध्ययन के प्रथम उद्देशामें यथा—तदनेन पंचदशविधेनापि योगेनात्मा अष्टौ प्रदेशान् विहाय तप्तभाजनोदकवदुद्वर्त्तमानैः सर्वैरैवात्मप्रदेशैरात्मप्रदेशावष्टब्धाकाशस्थं कार्मणशरीरयोग्यं कर्मदलिकं यद् बध्ननाति तत् प्रयोगकर्मेत्युच्यते॥अर्थात् इन आठ प्रदेशो में कर्म नहीं लगते.
आठों प्रदेश निरावरण है तो लोकालोक क्यों नहीं देखते ? उत्तर-आत्माकी जो गुणप्रवृत्ति है वह सब प्रदेशों के मिलनेसे प्रवर्तमान होती है. वे आठ प्रदेश अल्प हैं. अल्पत्वात् निरावरण होनेपर भी कार्य नहीं कर सक्ते जैसे-अग्नि का सूक्ष्म कण दाहक प्रकाशक पाचक होते हुवे भी अल्पता के कारण दाहकादि कार्य नहीं कर सकते
वे आठों प्रदेश निरावरण कैसे रहे ? उत्तर-जो चल प्रदेश हैं उनके कर्म लगते हैं. अचल प्रदेशों के कर्म नहीं लगते. भगवतीसूत्र में कहा है-" जेअइ वेअइ चलइ कंदइ घट्टइ सेबंधई" ऐसा पाठ है इस वास्ते चल प्रदेश हो वे कर्म बांधे. आठ प्रदेश अचल हैं इस वास्ते कर्म नहीं बांधते । कार्याभ्यास से प्रदेश इकठे होते हैं. तब उन प्रदेशोंके गुण भी उस कार्य को करने के लिये प्रवर्तमान होते हैं. तथा जिस प्रदेशका जो गुण है वह उस प्रदेश को छोड़के अन्य प्रदेश में नहीं जाता. जीवके आठ प्रदेश हमेशा निरावरण रहते हैं. दूसरे प्रदेशोंमें अक्षर का अनन्तवां भाग चेत