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वक्तव्यावक्तव्य स्त्र.
जाननेवाला है. परन्तु एक परमाणु के सब पर्यायों को नहीं जानता किन्तु कितनेक पर्यायों को जानता है. और कालसे असंख्यात समय जानता है. केवलज्ञान छत्र द्रव्य के सब पर्यायों को एक समय प्रत्यक्षरूप से जानता है इसलिये द्रव्यमें वक्तव्यता धर्म न होंतो श्रुतज्ञान से ग्रहण नहीं हो सक्ता और इसके बिना मन्था-भ्यास, उपदेशादि सब नहीं हो सक्ते इसलिये द्रव्यमें वक्तव्य स्वभाव है ।
अवक्तव्य स्वभाव नहीं मानते हैं तो ? वस्तुमें अबीत पर्याय जो कारणता की परंपरा में रही है. तथा अनागत पर्याय सव योग्यता में रही है. उन सबका अभाव होता है. जिस समय वस्तु में वर्तमान पर्याय की अस्ति है. उससे अतीत, अनागत का ज्ञान नहीं होता इसलिये अवक्तव्यस्वभाव अवश्य मानना चाहिये. नहीं तो वर्तमान सब कार्य निराधार हो जायगा. और द्रव्य में एक समय अनन्ते कारण हैं. वे कारण अनन्त कार्य धर्मरूप हैं. अनन्त कार्य के अनन्त कारण उसका परंपर ज्ञान केवलीको हैं. वर्तमान कारण धर्म तथा कार्य धर्मसे अनन्त गुण कारण, कार्यकी योग्यता रूप सत्ता में है. वे किसी के अविभाग नहीं है. किन्तु अविभागी ज्ञानादिगुण में अनन्त कारण, कार्य धर्म उत्पन्न होने की योग्यता रूप सत्ता है. वह सब वक्तव्य रूप है ।
अब परम स्वभाव का स्वरूप कहते हैं. सब धर्मास्तिकायादि पदार्थ के विशेषगुण- जैसे- धर्मास्तिकाय का चलनसहकारीअधर्मास्तिकायका स्थिरसहकारीपना, आकाशास्तिकाय का