________________
[३२] अर्थ- इस प्रकार वीतराग देव से ज्ञान के द्वारा कहे हुए सम्यक्त्व और संयम के
आश्रयरूप सम्यक्त्वचरण और संयमचरण नामक दो प्रकार के चारित्र को आचार्य ने संक्षेप में उपदेश किया है ॥४४॥ -
गाथा--भावेह भावसुद्धं फुडु रइयं चरणपाहुडं चेव ।
लहु चउगइ चइऊणं अइरेणऽपुणभवा होई ॥४५॥ छाया- भावयत भावशुद्ध स्फुट रचितं चरणप्राभृतं चैव ।
लघु चतुर्गतीः त्यक्त्वा अचिरेण अपुनर्भवाः भवत ॥ ४५ ॥ अर्थ- हे भव्यजीवो! हमने यह चारित्र पाहुड़ प्रगट रूप से बनाया है, उसको
तुम शुद्ध भावों से विचार करो। जिससे शीघ्र ही चारों गतियों को छोड़ कर फिर संसार में जन्मधारण न करो अर्थात् मोक्ष प्राप्त करो॥ ४५ ॥