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[१३१] छाया, पापोपहतभावः सेवते च अब्रह्म लिंगिरूपेण ।
___ सः पापमोहितमतिः हिण्डते संसारकान्तारे ॥७॥ अर्थ-पाप से नष्ट हो गये हैं शुद्धभाव जिसके, ऐसा जो मुनि दिगम्बर वेष धारण
करके व्यभिचार सेवन करता है वह पापबुद्धि वाला संसार रूपी बन में घूमता है॥७॥
गाथा-दंसणणाणचरित्ते उवहाणे जइ ण लिंगरूवेण ।
अहं झायदि झाणं अणंतसंसारिओ होदि ॥८॥ छाया-दर्शनज्ञानचारित्राणि उपधानानि यदि न लिंगरूपेण ।
आर्तं ध्यायति ध्यानं अनन्तसंसारिकः भवति ॥८॥ अथ-जो लिंग ( नग्नवेष ) धारण करके सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्
चारित्र को उपधान न बनाया अर्थात् धारण न किया और आर्तध्यान ही • करता रहा तो वह मुनि अनन्त संसारी होता है अर्थात् अनन्त काल तक संसार में घूमता है ॥८॥
गाथा-जो जोडेदि विवाहं किसिकम्मवणिजजीवघादं च ।
वजदि णरयं पाओ करमाणो लिंगिरूवेण ॥ ६ ॥ छाया-यः योजयति विवाहं कृषिकर्मवाणिज्यजीवघातं च।
व्रजति नरकं पापः कुर्वाणः लिंगिरूपेण ॥ ६॥ अर्थ-जो मुनि गृहस्थों का विवाह कराता है, खेती, व्यापार, जीवहिंसा आदि
करता है । वह पापी मुनि के वेष से खोटी क्रियायें करता हुआ नरक में उत्पन्न होता है ॥६॥
गाथा-चोराण लाउराण य जुद्ध विवादं च तिव्वकम्मेहिं ।
जंतेण दिव्वमाणो गच्छदि लिंगी णरयवासं ॥१०॥ छाया-चौराणां लापराणां च युद्धं विवादं च तीव्रकर्मभिः। .
यंत्रेण दीव्यमानः गच्छति लिंगी नरकवासम् ॥१०॥