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________________ . [४] गाथा-पावं हवइ असेसं पुण्णमसेसं च हवइ परिणामा। ... ..... परिणमादो बंधो-मुक्खो जिणसासणे दिट्ठो ॥ ११६ ॥ छाया- पापं भवति अशेषं पुण्यमशेषं च भवति परिणामात्। परिणामाद् बन्धः मोक्षः जिनशासने दिष्टः ॥ ११६ ॥ अर्थ-समस्त पुण्य और पाप परिणाम से ही होते हैं तथा बन्ध और मोक्ष भी परिणाम से ही होते हैं, ऐसा जिन शास्त्र में कहा है ॥ ११६ ॥ गाथा- मिच्छत्त तह कसायाऽसंजमजोगेहिं असुहलेस्सेहिं । बंधइ असुहं कम्मं जिणवयणपरम्मुहो जीवो ॥ ११७ ॥ छाया-मिथ्यात्वं तथा कषायासंयमयोगैः अशुभलेश्यैः। . बध्नाति अशुभं कर्म जिनवच पराङ्मुखः जीवः ॥ ११७ ॥ अर्थ-जिनेन्द्रभगवान के वचन से पराङ्मुख (विरुद्ध) जीव मिथ्यात्व, कषाय, असंयम, योग और अशुभ लेश्याओं के द्वारा अशुभ कर्म बांधता है ॥ ११७॥ गाथा- तब्विवरीओ बंधइ सुहकम्मं भावसुद्धिमावएणो। दुविहपयारं बंधइ संखेपेणेव वजरियं ॥ ११८ ॥ __ छाया-तद्विपरीतः बध्नाति शुभकर्म भावशुद्धिमापन्नः । __द्विविधप्रकारं बध्नाति संक्षेपेणैव कथितम् ॥ ११८ ॥ अर्थ- उस पहले कहे हुए मिथ्यादृष्टि जीव से विपरीत सम्यग्दृष्टि जीव भावों की शुद्धता को प्राप्त कर शुभकर्म बांधता है । इस तरह जीव दोनों प्रकार के कर्म बांधता है, ऐसा जिनेन्द्र भगवान ने संक्षेप से कहा है ॥ १८ ॥ गाथा- णाणावरणादीहिं य अट्टहिं कम्मेहिं बेढिओ य अहं । ___ डहिऊण इण्हि पयडमि अणंत णाणाइगुणचित्तां ॥ ११६ ॥ छाया- ज्ञानावरणादिभिश्च अष्टभिः कर्मभिः वेष्टितश्चाहम् । दग्ध्वा इदानीं प्रकटयामि अनन्तज्ञानादिगुणचेतनाम् ॥ ११६ ॥ अर्थ- हे मुनि ! तू ऐसा विचार कर कि मैं ज्ञानावरणादि आठ कर्मों से ढका
SR No.022411
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasdas Jain
PublisherBharatvarshiya Anathrakshak Jain Society
Publication Year1943
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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