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लब्धिसारः। अवरादो चरिमोत्ति य अणंतगुणिदक्कमादु सत्तीदो। इदि किट्टीकरणद्धा बादरलोहस्स बिदियद्धं ॥ २८७ ॥
अवरस्मात् चरम इति च अनंतगुणितक्रमात् शक्तितः । ___ इति कृष्टिकरणाद्धा बादरलोभस्य द्वितीयार्धम् ॥ २८७ ॥ अर्थ-जघन्य अपूर्वकृष्टि के अनुभागके अविभागप्रतिच्छेदोंसे द्वितीय पूर्वकृष्टिकी अंतकृष्टितकके अविभागप्रतिच्छेद क्रमसे अनन्त अनन्तगुणे हैं । इसप्रकार बादर लोभवेदककालके द्वितीयअर्धमात्ररूप सूक्ष्मकृष्टि करनेका काल वितीत होता है ॥ २८७॥
विदियद्धा संखेजाभागेसु गदेसु लोभठिदिबंधो। अंतोमुहुत्तमेत्तं दिवसपुधत्तं तिघादीणं ॥ २८८ ॥
द्वितीयाद्धा संख्येयभागेषु गतेषु लोभस्थितिबंधः ।
__ अंतर्मुहूर्तमानं दिवसपृथक्त्वं त्रिघातिनाम् ॥ २८८ ॥ अर्थ-संज्वलनलोभकी प्रथम स्थितिका द्वितीय अर्धमात्र कृष्टि करणकालके संख्याते बहुभाग वीतनेपर अन्तसमयमें संज्वलनलोभका अन्तर्मुहूर्तमात्र और तीन घातियाओंका पृथक्त्व दिनमात्र स्थितिबन्ध होता है ॥ २८८ ॥
किट्टीकरणद्धाए जाव दुचरिमं तु होदि ठिदिबंधो। वस्साणं संखेजसहस्साणि अघादिठिदिबंधो ॥ २८९ ॥
कृष्टिकरणाद्धाया यावत् द्विचरमं तु भवति स्थितिबंधः।
वर्षाणां संख्येयसहस्राणि अघातिस्थितिबंधः ॥ २८९ ॥ अर्थ-कृष्टिकरणकालका जबतक द्विचरमसमय प्राप्त होवे तबतक तीन अघातियाओंका स्थितिबन्ध संख्यातहजार वर्षमात्र है और संज्वलनलोभादिका भी स्थितिबन्ध इसीके समान है ॥ २८९॥
किट्टीयद्धाचरिमे लोभस्संतो मुहुत्तियं बंधो। दिवसंतो घादीणं वेवस्संतो अघादीणं ॥ २९॥
कृष्ट्यद्धाचरमे लोभस्यांतर्मुहूर्तकं बंधः।।
दिवसांतः घातिनां द्विवर्षातो अघातिनाम् ॥ २९० ॥ अर्थ-कृष्टिकरण कालके अन्तसमयमें पहले स्थितिबन्धसे संख्यातगुणाकम संज्वलनलोभका अन्तर्मुहूर्तमात्र, तीन घातियाओंका कुछ कम एक दिन और अघातियाओंका कुछकम दोवर्ष स्थितिबन्ध होता है ॥ २९० ॥
बिदियद्धा परिसेसे समऊणावलितियेसु लोभदुगं ।
सट्टाणे उवसमदि हु ण देदि संजलणलोहम्मि ॥ २९१ ॥ ल. सा. ११