________________
रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् ।
अतीते बंधसहस्रे पल्यासंख्येयं तु स्थितिबंध: ।
तत्र असंख्येयानां उदीरणा समयप्रबद्धानाम् ॥ २३६ ॥
अर्थ-क्रमकरण प्रारंभके समय से लेकर संख्यात हजार स्थितिबन्धापसरण वीतनेपर जिस जगह क्रमकरणके अंत में मोहादिकोंका पल्यका असंख्यातवां भागमात्र स्थितिबन्ध हुआ है वहां असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणा होती है ॥ २३६ ॥
光
ठिदिबंध सहस्सगदे मणदाणा तत्तियेवि ओहिदुगं ।
लाभं व पुणो वि सुदं अ चक्खु भोगं पुणो चक्खु ॥ २३७ ॥ पुणरवि मदिपरिभोगं पुणरवि विश्यं कमेण अणुभागो ।
बंधेण देसघादी पल्लासंखं तु ठिदिबंधे ॥ २३८ ॥ स्थितिबंधसहस्रगते मनोदाने तावन्मात्रेपि अवधिद्विकं । लाभो वा पुनरपि श्रुतं च चक्षुर्भोगं पुनरचक्षुः ॥ २३७ ॥ पुनरपि मतिपरिभोगं पुनरपि वीर्यं क्रमेण अनुभागः । बंधेन देशघातिः पल्यासंख्यं तु स्थितिबंधे ॥ २३८ ॥
1
अर्थ – पूर्व प्रकृतियोंका सर्वघाती स्पर्धकरूप अनुभाग बांधता था अब देशघाति करसे लेकर दारु लता समान दोस्थानगत देशघाती स्पर्धक रूप ही अनुभागको बांधता है। वहां असंख्यात समयप्रबद्ध की उदीरणाके प्रारंभ से आगे संख्यात हजार स्थितिबन्धापसरण वीत जानेपर मन:पर्ययज्ञानावरण दानांतरायका देशघातीबंध होता है । उससे परे उतने २ ही स्थितिबन्धापसरण वीतनेपर क्रमसे अवधिज्ञानावरण अवधिदर्शनावरण लाभांतराय - इनका और श्रुतज्ञानावरण चक्षुदर्शनावरण भोगांतरायका तथा मतिज्ञानावरण उपभोगांत - राम वीर्यात रायका देशघाती बन्ध होता है । और देशघातीकरण के अंत में मोहादिकों का स्थितिबन्ध पल्यका असंख्यातवां भागमात्र ही है ।। २३७ । २३८ ॥
तो देसघादिकरणादुवरिं तु गदेसु तत्तियपदेसु । surataमोहणीयाणंतरकरणं करेदीदि ॥ २३९ ॥ अतो देशघातिकरणादुपरि तु गतेषु तावत्कपदेषु । एकविंशमोहनीयानामंतरकरणं करोतीति ॥ २३९॥
अर्थ-उस देशघातिकरणसे ऊपर संख्यात हजार स्थितिबन्ध वीतनेपर इक्कीस मोह - नीयकी प्रकृतियोंका अंतरकरण करता है || २३९ ॥ ऊपरके वा नीचेके निषेकों को छोड़ श्रीचके विवक्षित कितने ही निषेकोंका अभाव करना वह अंतरकरण है
1
संजणाणं एकं वेदाणेकं उदेदि तं दोहं ।
साणं पढमडिदि वेदि अंतोमुहुत्त आवलियं ॥ २४० ॥