________________
लब्धिसारः।
५१ अर्थ-सबसे थोड़ा देशसंयतके एकांतवृद्धिकालके अन्तमें संभव जघन्य अनुभागखंडोकरणकाल है १ । उससे कुछ विशेषकर अधिक अपूर्वकरणके प्रथमसमय में सम्भव उत्कृष्ट अनुभागखण्डोत्करण काल है २ । उससे संख्यातगुणा देशसंयतके एकांतवृद्धिकालके अन्तसमयमें संभवता जघन्यस्थिति कांडकोत्करणकाल ३ है ॥ १७६ ॥
पढमट्ठिदिखंडुकीरणकालो साहियो हवे तत्तो। एयंतवड्डिकालो अपुवकालो य संखगुणियकमा ॥ १७७ ॥ प्रथमस्थितिखंडोत्करणकालः साधिको भवेत् ततः।
एकांतवृद्धिकाले अपूर्वकालश्च संख्यगुणितक्रमः ॥ १७७ ॥ "अर्थ—उससे कुछ विशेषकर अधिक अपूर्वकरणके प्रथमसमयमें संभवता उत्कृष्टस्थितिखण्डोत्करणकाल है ४ । उससे संख्यातगुणा एकांतवृद्धिका काल है ५ । उससे संख्यातगुणा अपूर्वकरणका काल ६ है ॥ १७७ ॥
अवरा मिच्छतियद्धा अविरद तह देससंयमद्धा य ।
छप्पि समा संखगुणा तत्तो देसस्स गुणसेढी ॥ १७८ ॥ .... अवरा मिथ्यत्रिकाद्धा अविरता तथा देशसंयमाद्धा च ।
. षडपि समाः संख्यगुणा ततो देशस्य गुणश्रेणी ॥ १७८ ॥ अर्थ-उससे संख्यातगुणा मिथ्यात्व सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वमोहनी इन तीनोंका उदयकाल और असंयम देशसंयम सकलसंयम-इन छहोंका जघन्यकाल आपसमें समान है ७ । उससे संख्यातगुणा अपूर्वकरणके प्रथमसमयमें जिसका आरंभ हुआ ऐसा देशसंयतका गुणश्रेणी आयाम ८ है ॥ १७८ ॥
चरिमाबाहा तत्तो पढमावाहा य संखगुणियकमा। तत्तो असंखगुणियो चरिमझिदिखंडओ णियमा ॥ १७९ ॥
चरमाबाधा ततः प्रथमाबाधा च संख्यगुणितक्रमा ।
तत असंख्यगुणितः चरमस्थितिखंडो नियमात् ॥ १७९ ॥ अर्थ-उससे संख्यातगुणा एकांतवृद्धिके अन्तसमयमें संभव स्थितिबन्धका जघन्य आबाधा काल है ९ । उससे संख्यातगुणा अपूर्वकरणके प्रथम समयमें संभवते स्थितिबन्धका उत्कृष्ट आबाधाकाल है १०। यहांतक ये कहे हुए सबकाल प्रत्येक अन्तर्मुहूर्तमात्र ही जानना । उससे असंख्यातगुणा एकांतवृद्धिके अन्तसमयमें सम्भवता जघन्यस्थितिकांडक आयाम ११ है ॥ १७९ ॥
पल्लस्स संखभागं चरिमटिदिखंडयं हवे जम्हा । तम्हा असंखगुणियं चरिमं ठिदिखंडयं होई ॥ १८० ॥ .