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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । कृष्टिका गच्छ होता है । एक एक समय संबंधी परिणामोंमें इतने २ खंड होते हैं । वे निर्वर्गणकांडक समान जानना ॥ ४३ ॥
पडिसमयगपरिणामा णिवग्गणसमयमेत्तखंडकमा । अहियकमा हु विसेसे मुहुत्तअंतो हु पडिभागो ॥४४॥ प्रतिसमयगपरिणामा निर्वर्गणसमयमात्रखंडक्रमाः।
अधिकक्रमा हि विशेषे मुहूर्तातर्हि प्रतिभागः ॥ ४४ ॥ अर्थ-समय समयके परिणामोंमें निर्वर्गणाकांडक समान खंड करना । वे भी पहले खंडसे द्वितीय आदि क्रमसे विशेष (चय ) कर बढते हैं । वहां पहले खंडमें अंतर्मुहूतका भाग देनेसे विशेषका प्रमाण आता है ॥ ४४ ॥
पडिखंडगपरिणामा पत्तेयमसंखलोगमेत्ता हु। लोयाणमसंखेज्जा छट्ठाणाणी विसेसेवि ॥ ४५ ॥ प्रतिखंडगपरिणामाः प्रत्येकमसंख्यलोकमात्रा हि ।
लोकानामसंख्येया षटूस्थानानि विशेषेपि ॥ ४५ ॥ । अर्थ-हरएक खंडमें जघन्य मध्यम उत्कृष्टता लिये हुए विशुद्धपरिणामों के भेद असंख्यातलोकमात्र हैं और यहां एक एक खंडमें तथा एक एक अनुकृष्टि विशेषमें भी असं. ख्यातलोकमात्रवार छहस्थानरूपी वृद्धिका संभव है ॥ ४५ ॥
पढमे चरिमे समये पढमं चरिमं च खंडमसरित्थं । सेसा सरिसा सधे अट्ठवंकादिअंतगया ॥ ४६ ॥ प्रथम चरमे समये प्रथमं चरमं च खंडमसदृशम् ।
शेषाः सदृशाः सर्वे अष्टोर्वकाद्यंतगताः ॥ ४६ ॥ अर्थ-प्रथमसमयका प्रथमखंड अंतसमयका अंतखंड-ये दोनों तो किसी खंडके समान नहीं हैं । बाकी सबखंड अन्यखंडोंसे यथासंभव समान पाये जाते हैं उन खंडोमें जो परिणामोंका पुज कहा है उसमें पहला परिणाम अष्टांक है अर्थात् पूर्व परिणामसे अनंतगुणा वृद्धिखरूप है । और अंतका परिणाम उर्वक है अर्थात् पूर्वपरिणामसे अनंतभागवृद्धिरूप है । क्योंकि छह स्थानोंका आदि अष्टांक और अंत उर्वक कहा गया है ॥ ४६॥
चरिमे सचे खंडा दुचरिमसमओत्ति अवरखंडाए।
असरिसखंडाणोली अधापवत्तम्हि करणम्मि ॥ ४७॥ १ वर्गणा अर्थात् समयोंकी समानता उससे रहित ऊपर २ समयवर्ती परिणामखंडोंका कांडक (पर्व) उसको निर्वर्गणाकांडक कहते हैं । वे अधःकरणकालमें संख्यात हजार होते हैं।