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ओं नमः प्रस्तावना।
प्रिय पाठकगण ! आज मैं श्रीमहावीर प्रभुकी कृपासे आपके सामने यह क्षपणासारगर्भित लब्धिसार ग्रंथ संस्कृत छाया तथा संक्षिप्त हिंदीभाषाटीका सहित उपस्थित करता हूं; जो कि गोमटसारका परिशिष्ट भाग है। गोमटसारके दोनों भागोंमें जीव और कर्मका स्वरूप विस्तारसे दिखलाया गया है । तथा इस उक्त ग्रंथमें कर्मोंसे छूटनेका उपाय विस्तार सहित दिखलाया है । सब कर्मोंमें मोहनीयकर्म बलवान है, उसमें भी दर्शनमोहनीय जिसका दूसरा नाम मिथ्यात्वकर्म है सबसे अधिक बलवान है । इसी कर्मके मौजूद रहनेसे जीव संसारमें भटकता हुआ दुःख भोगरहा है। यदि यह दर्शनमोहनीयकर्म छूट जावे तो जीव सभी कर्मोंसे मुक्त होकर अनन्तसुखमय अपनी स्वाभाविक अबस्थाकोप्राप्त होंसकता है ।
इसीकारण इस लब्धिसार ग्रंथमें पहले मिथ्यात्वकर्म छुड़ानेकेलिये पांच लब्धियोंका वर्णन है । पांचोमें भी मुख्यतासे करणलब्धिका स्वरूप अच्छीतरह दिखलाया गया है। इसीसे मिथ्यात्व कर्म छूटकर सम्यक्त्वगुणकी प्राप्ति होती है। यही गुण मोक्षका मूलकारण है । उसके वाद चारित्रकी प्राप्तिका उपाय बतलाया है । चारित्रके कथनमें चारित्रमोहनीयकमैके उपशम व क्षय (नाश) होनेका क्रम दिखलाया है। उसके बाद बाकी कोंके क्षय होनेकी विधि बतलाई गयी है । कर्मोंका क्षय होनेपर मोक्षको प्राप्त जीवके मोक्षस्थानका स्वरूप दिखलाके ग्रंथ समाप्त किया गया है। ___ यह ग्रंथ श्रीचामुंडराय राजाके प्रश्नके निमित्तसे श्रीनेमिचंद्रसिद्धांतचक्रवर्तीने बनाया है जोकि कषायप्राभृत नामा जयधवलसिद्धांतके पंद्रह अधिकारोंमेंसे पश्चिमस्कंध नामके पंद्रहवें अधिकारके अभिप्रायसे गर्मित है । इसकी संस्कृतटीका उपशम चारित्रके अधिकारतक केशववर्णीकृत मिलती है आगेके क्षपणाधिकारकी नहीं।
इसकी भाषाटीका श्रीमान् विद्वच्छिरोमणि टोडरमल्लजीने बनाई है, वह बहुत विस्तारसे हैं। उसमें उन्होंने लिखा है कि उपशमचारित्रतक तो संस्कृतटीकाके अनुसार व्याख्यान किया गया है। किंतु कोंके क्षपणा अधिकारके गाथाओंका व्याख्यान श्रीमाधवचंद्र आचार्यकृत संस्कृतगद्य रूप क्षपणासारके अनुसार अभिप्राय शामिल कर किया गया है। इसीसे इस ग्रंथका नाम लब्धिसार क्षपणासार प्रसिद्ध है।