________________
१५८
रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । .. अर्थ-इस अल्पबहुत्वविधानकर सूक्ष्मसांपरायमें द्वितीय आदि स्थितिकांडकोंके कालमें गुणश्रेणीको छोड़ ऊपरकी सब स्थितिका एक गोपुच्छ होता है ॥ ५८९॥
सुहुमाणं किट्टीणं हेट्ठा अणुदिण्णगा हु थोवाओ । उवरिं तु विसेसहिया मज्झे उदया असंखगुणा ॥ ५९० ॥ '' सूक्ष्मानां कृष्टीनां अधस्तना अनुदीर्णका हि स्तोकाः।
उपरि तु विशेषाधिका मध्ये उदया असंख्यगुणाः ॥ ५९० ॥ अर्थ-सूक्ष्मकृष्टियोंमें जो जघन्यकृष्टि आदि नीचेकी कृष्टियां उदयरूप नहीं होती उनका प्रमाण थोड़ा है । उससे ऊपरली कृष्टियोंका प्रमाण पल्यासंख्यातवें भाग विशेषकर अधिक है और वीचकी उदयरूप कृष्टियां असंख्यातगुणी हैं ॥ ५९० ॥
सुहमे संखसहस्से खंडे तीदे वसाणखंडेण । आगायदि गुणसेढी आगादो संखभागे च ॥ ५९१ ॥ सूक्ष्मे संख्यसहस्र खंडेऽतीतेऽवसानखंडेन ।
आगाप्यते गुणश्रेणी अग्रतः संख्यभागे च ॥ ५९१ ॥ अर्थ-सूक्ष्मसांपरायमें संख्यातहजार स्थितिकांडक वीतनेपर अन्तके स्थितिखण्डसे पूर्वगुणश्रेणी आयामके संख्यातवें भागमात्र आयाममें गुणश्रेणी करता है ॥ ५९१ ॥
एत्तो सुहुमंतोत्ति य दिजस्स य दिस्समाणगस्स कमो। सम्मत्तचरिमखंडे तक्कदिकजेवि उत्तं च ॥ ५९२ ॥ इतः सूक्ष्मांत इति च देयस्य च दृश्यमानस्य क्रमः।
सम्यक्त्वचरमखंडे तत्कृतकार्येपि उक्तमिव ॥ ५९२ ॥ __ अर्थ-यहांसे लेकर सूक्ष्मसांपरायके अन्ततक देय द्रव्य और दृश्यमानद्रव्यका क्रम है वह जैसे सम्यक्त्वमोहनीयके अन्तस्थितिकांडकमें अथवा उसके कृतकृत्यपनेमें पहले कहा था वैसे ही जानना ॥ ५९२ ॥ - उक्किण्णे अवसाणे खंडे मोहस्स णत्थि ठिदिघादो।
ठिदिसत्तं मोहस्स य सुहुमद्धासेसपरिमाणं ॥ ५९३ ॥
उत्कीर्णेऽवसाने खंडे मोहस्य नास्ति स्थितिघातः।
स्थितिसत्त्वं मोहस्य च सूक्ष्माद्धाशेषपरिमाणं ॥ ५९३ ॥ अर्थ-इसप्रकार मोहराजाके मस्तक समान लोभके अन्तकांडकका घातकरते हुए मोहका स्थितिघात नहीं होता । अब सूक्ष्मसांपरायका जितना काल शेष रहा है उतना ही मोहका स्थितिसत्त्व रहा है ॥ ५९३ ॥