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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । तदियगमायाचरिमे पण्णरवारसय दिवसमासाणि । दोण्हं संजलणाणं ठिदिबंधो तह य सत्तो य ॥ ५५७ ॥ तृतीयकमायाचरमे पंचदशद्वादश दिवसमासाः ।
द्वयोः संज्वलनयोः स्थितिबंधस्तथा च सत्वं च ॥ ५५७ ॥ अर्थ-मायाकी तीसरी संग्रहकृष्टिवेदकके अन्तसमयमें दो संज्वलनोंका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्तकम पन्द्रह दिन है और स्थितिसत्त्व अन्तर्मुहूर्तकम बारह महीने है ॥ ५५७ ॥
मासपुधत्तं वासा संखसहस्साणि बंध सत्तो य । घादितियाणिदराणं संखमसंखेजवस्साणि ॥ ५५८ ॥ मासपृथक्त्वं वर्षाः संख्यसहस्राः बंधः सत्त्वं च ।।
घातित्रयाणामितरेषां संख्यमसंख्येयवोंः ॥ ५५८ ॥ अर्थ-तीन घातियाओंका स्थितिबन्ध पृथक्त्वमासप्रमाण है और स्थितिसत्त्व संख्यातहजार वर्षमात्र है । तथा तीन अघातियाओंका स्थितिबन्ध संख्यातवर्षमात्र है और स्थितिसत्त्व असंख्यातवर्षमात्र है ॥ ५५८ ॥
लोहस्स पढमचरिमे लोहस्संतोमुहुत्त बंधदुगे। दिवसपुधत्तं वासा संखसहस्साणि घादितिये ॥ ५५९ ॥
लोभस्य प्रथमचरमे लोभस्यांतर्मुहूर्त बंधद्विके।
दिवसपृथक्त्वं वर्षाः संख्यसहस्रा घातित्रये ॥ ५५९ ॥ अर्थ-लोभकी प्रथमसंग्रहकृष्टिवेदकके अन्तसमयमें संज्वलनलोभका स्थितिबन्ध अथवा स्थितिसत्त्व अन्तर्मुहूर्त है परंतु बन्धसे सत्त्व संख्यातगुणा है। और तीन घातियाओंका स्थितिबन्ध पृथक्त्वदिनमात्र तथा स्थितिसत्त्व संख्यातहजार वर्ष है ॥ ५५९ ॥
सेसाणं पयडीणं वासपुधत्तं तु होदि ठिदिबंधो। ठिदिसत्तमसंखेजा वस्साणि हवंति णियमेण ॥ ५६० ॥
शेषाणां प्रकृतीनां वर्षपृथक्त्वं तु भवति स्थितिबंधः ।
स्थितिसत्त्वमसंख्येया वर्षा भवंति नियमेन ॥ ५६० ॥ अर्थ-शेष तीन अघातियाओंका स्थितिबन्ध पृथक्त्ववर्षमात्र है और स्थितिसत्त्व असं. ख्यातवर्षमात्र नियमसे होता है ॥ ५६० ॥
से काले लोहस्स य विदियादो संगहादु पढमठिदी। ताहे सुहुमं किहि करेदि तविदियतदियादो ॥ ५६१॥
स्खे काले लोभस्य च द्वितीयतः संग्रहात् प्रथमस्थितिः । तत्र सूक्ष्मां कृष्टिं करोति तद्वितीयतृतीयतः ॥ ५६१ ॥