________________
१४८
. रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । घातित्रयाणां बंधी वर्षपृथत्त्वं तु शेषप्रकृतीनाम् ।
वर्षाणां संख्येयसहस्राणि भवंति नियमेन ॥ ५४८ ॥ अर्थ-तीन घातियाओंका स्थितिबन्ध पृथक्त्व ( तीनके ऊपर ) वर्षमात्र है और शेष अघातियाओंका स्थितिबन्ध संख्यातहजार वर्षमात्र नियमसे है ।। ५४८ ॥
घादितियाणं सत्तं संखसहस्साणि होति वस्साणं । तिण्हं पि अघादीणं वस्साणि असंखमेत्ताणि ॥ ५४९ ॥
घातिन्त्रयाणां सत्त्वं संख्यसहस्राणि भवंति वर्षाणां ।
नयाणामपि अघातिनां वर्षा असंख्यमानाः ॥ ५४९ ॥ अर्थ-तीन घातियाओंका स्थितिसत्त्व संख्यातहजार वर्ष है और आयुके विना तीन अघातियाओंका स्थितिसत्त्व असंख्यातवर्षमात्र है ॥ ५४९ ॥
से काले कोहस्स य तदियादो संगहादु पढमठिदी। अंते संजलणाणं बंधं सत्तं दुमास चउवस्सा ॥ ५५० ॥ स्वे काले क्रोधस्य च तृतीयतः संग्रहात् प्रथमस्थितिः ।
अंते संज्वलनानां बंधं सत्त्वं द्विमासं चतुर्वर्षाः ॥ ५५० ॥ अर्थ-उसके बाद अपने कालमें क्रोधकी तीसरी संग्रह कृष्टिका वेदक होता है उस वेदककालसे आवलि अधिकमात्र प्रथमस्थिति करता है । और वहां अन्तसमयमें संज्वलन चारका स्थितिबन्ध दो महीने तथा स्थितिसत्त्व चार वर्षमात्र जानना । शेषकर्मोंका पूर्ववत् है ॥ ५५० ॥
से काले माणस्स य पढमादो संगहादु पढमठिदी। माणोदयअद्धाए तिभागमेत्ता हु पढमठिदी ॥ ५५१ ॥
खे काले मानस्य च प्रथमात् संग्रहात् प्रथमस्थितिः ।
मानोदयाद्धायाः त्रिभागमात्रा हि प्रथमस्थितिः ॥ ५५१ ॥ अर्थ-उसके वाद अपने कालमें मानकी प्रथमसंग्रहकृष्टिकी गुणश्रेणीरूप प्रथमस्थिति करता है । वह मानके वेदककालका तीसरा भाग आवलिसे अधिक उस प्रथमस्थितिका प्रमाण है । वहां मानकी प्रथमसंग्रहकृष्टिका वेदक होता है ॥ ५५१ ॥
कोहपढमं व माणो चरिमे अंतोमुहुत्तपरिहीणो। दिणमासपण्णचत्तं बंधं सत्तं तिसंजलणगाणं ॥ ५५२॥ क्रोधप्रथमं व मानः चरमे अंतर्मुहूर्तपरिहीनः । दिनमासपंचाशच्चत्वारिंशत् बंधः सत्त्वं त्रिसंज्वलनानाम् ॥ ५५२ ॥