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लब्धिसारः।
१३७ बारेकारमणंतं पुवादि अपुवआदि सेसं तु। तेवीस ऊंटकूडा दिजे दिस्से अणंतभागूणं ॥ ५०२॥ द्वादशैकादशमनंतं पूर्वादि अपूर्वादि शेषं तु ।
त्रयोविंशतिरुष्ट्रकूटा देये दृश्ये अनंतभागोनम् ॥ ५०२ ॥ अर्थ-पुरातन प्रथमकृष्टि बारह और नवीन प्रथमकृष्टि ग्यारह तथा शेषकृष्टियां अनंत जानना । इसप्रकार देयद्रव्यमें तेवीस स्थानोंमें उष्ट्रकूट ( ऊंटकी पीठ समान.) रचना होती है । और दृश्यमानद्रव्यमें अनन्तवें भागमात्र घटता हुआ क्रम जानना ॥ ५०२ ॥
किट्टीकरणद्धाए चरिमे अंतोमुहुत्तसुज्जत्तो। चत्तारि होति मासा संजलणाणं तु ठिदिबंधो ॥५०३॥ कृष्टिकरणाद्धायाः चरमे अंतर्मुहूर्तसंयुक्ताः।
चत्वारो भवंति मासाः संज्वलनानां तु स्थितिबंधः ॥ ५०३ ॥ अर्थ-कृष्टिकरणकालके अन्तसमयमें अन्तर्मुहूर्त अधिक चार मास प्रमाण संज्वलनचारका स्थितिबन्ध है । अपूर्वस्पर्धककरणकालके अन्तसमयमें आठ वर्षमात्र था वह एक एक स्थितिबन्धापरणमें अन्तर्मुहूर्तमात्र कम होकर यहां इतना रहजाता है ॥ ५०३॥
सेसाणं वस्साणं संखेजसहस्सगाणि ठिदिबंधो। मोहस्स य ठिदिसंतं अडवस्संतोमुहुत्तहियं ॥५०४ ॥
शेषाणां वर्षाणां संख्येयसहस्रकानि स्थितिबंधः ।
मोहस्य च स्थितिसत्त्वं अष्टवर्षोन्तर्मुहूर्ताधिकः ॥ ५०४ ॥ अर्थ-शेषकर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यातहजार वर्षमात्र है । पहले भी संख्यातहजार वर्षमात्र ही था वह संख्यातगुणा घटता क्रमरूप संख्यातहजार स्थितिबन्धापसरण होनेपर भी आलापकर इतना ही कहा है । और मोहनीयका स्थितिसत्त्व पहले संख्यातहजार वर्षमात्र था वह घटकर यहां अन्तर्मुहूर्त अधिक आठवर्षमात्र रहा है ॥ ५०४ ॥
घादितियाणं संखं वस्ससहस्साणि होदि ठिदिसंतं । वस्साणमसंखेजसहस्साणि अघादितिण्णं तु ॥ ५०५॥
घातित्रयाणां संख्यं वर्षसहस्राणि भवति स्थितिसत्त्वम् ।
वर्षाणामसंख्येयसहस्राणि अघातित्रयं तु ॥ ५०५॥ अर्थ-तीन घातियाओंका संख्यातहजार वर्षप्रमाण स्थितिसत्त्व है और तीन अघातियाओंका असंख्यातहजार वर्षमात्र स्थितिसत्त्व है ॥ ५०५ ॥
पडिपदमणंतगुणिदा किट्टीयो फड्ढया विसेसहिया। किट्टीण फड्ढयाणं लक्खणमणुभागमासेज ॥ ५०६ ॥ ल.सा. १८