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लब्धिसारः।
१३५ भागके क्रमसे घटता जानना । और नोकषायकी सब कृष्टियें क्रोधकी तीसरी संग्रहकृष्टिमें प्राप्त जाननी ॥ ४९३ ॥
कोहस्स य माणस्स य मायालोभोदएण चडिदस्स । बारस णव छ त्तिण्णि य संगहकिट्टी कमे होति ॥ ४९४ ॥ क्रोधस्य च मानस्य च मायालोभोदयेन चटितस्य ।
द्वादश नव षट् त्रीणि च संग्रहकृष्टयः क्रमेण भवंति ॥ ४९४ ॥ अर्थ-संज्वलनक्रोधके उदय सहित श्रेणी चढनेवाले जीवके चारों कषायोंकी बारह संग्रह कृष्टि होती हैं। मानके उदय सहितके तीन कषायोंकी नौ संग्रह कृष्टियां होती हैं । मायाके उदय सहितके छह संग्रह कृष्टियां और लोभके उदयसहित श्रेणी चढनेवालेके लोभकी ही तीन संग्रह कृष्टियां होती हैं ॥ ४९४ ॥
संगहगे एकेके अंतरकिट्टी हवंति हु अणंता। लोभादि अणंतगुणा कोहादि अणंतगुणहीणा ॥ ४९५ ॥
संग्रहके एकैकस्मिन् अंतरकृष्ट्यो भवंति हि अनंताः ।
लोभादौ अनंतगुणाः क्रोधादौ अनंतगुणहीनाः ॥ ४९५ ॥ अर्थ-एक एक संग्रह कृष्टिमें अन्तर कृष्टियां अनन्त हैं। उनमें लोभसे लेकर क्रमसे अनन्तगुणा बढता और क्रोधसे लेकर क्रमसे अनन्तगुणा घटता अनुभाग पाया जाता है ॥ ४९५॥
लोभादी कोहोत्ति य सट्टाणंतरमणतगुणिदकमं । तत्तो बादरसंगहकिट्टी अंतरमणंतगुणिदकमं ॥ ४९६ ॥ लोभादितः क्रोधांतं च स्वस्थानांतरमनंतगुणितक्रमं ।
ततो बादरसंग्रहकृष्टेरंतरमनंतगुणितक्रमम् ॥ ४९६ ॥ अर्थ-कोमसे लेकर क्रोधतक खस्थान अन्तर अनन्तगुणा क्रमलिये है । उससे बादरसंग्रहकृष्टियोंका अन्तर अनन्तगुणा क्रमलिये है ॥ ४९६ ॥
लोहस्स अवरकिट्टिगदत्वादो कोधजेट्ठकिहिस्स । दवोत्ति य हीणकम देदि अणंतेण भागेण ॥ ४९७ ॥ लोभस्य अवरकृष्टिगद्रव्यात् क्रोधज्येष्ठकृष्टेः ।
द्रव्यांतं च हीनक्रमं दीयते अनंतेन भागेन ॥ ४९७ ॥ अर्थ-लोभकी जघन्य कृष्टिके द्रव्यसे लेकर क्रोधकी उत्कृष्टकृष्टिके द्रव्यतक हीन क्रमलिये द्रव्य दिया जाता है वह अनन्तभाग घटता क्रमलिये है ॥ ४९७॥