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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । अर्थ-इससरह वीर्यातराय आदिका देशघातीबन्ध होता था वह उलटा सर्वघातीरूप अनुमागध होनेलगा। उसके बाद हजारों स्थितिबन्ध होनेपर असंख्यात समयप्रबद्धकी उदीरणा होनेका अभाव हुआ ॥ ३२९॥
लोयाणमसंखेजं समयपबद्धस्स होदि पडिभागो। तत्तियमेत्तद्दवस्सुदीरणा वट्टदे तत्तो ॥ ३३०॥ लोकानामसंख्येयं समयप्रबद्धस्य भवति प्रतिभागः ।
तावन्मात्रद्रव्यस्योदीरणा वर्तते ततः ॥ ३३० ॥ अर्थ-अब असंख्यातलोकका भागहार समयप्रबद्धको हुआ इसलिये असंख्यात समय प्रबद्धोंकी उदीरणाका नाश होकर अब एक समयप्रबद्ध के असंख्यातवें भागमात्र द्रव्यकी उदीरणा होनेलगी ॥ ३३० ॥
तकाले मोहणियं तीसीयं वीसियं च वेयणियं । मोहं वीसिय तीसिय वेयणिय कम हवे तत्तो ॥ ३३१॥ तत्काले मोहनीयं तीसियं वीसियं च वेदनीयम् ।।
मोहं वीसियं तीसियं वेदनीयं क्रमं भवेत् ततः ॥ ३३१ ॥ अर्थ-उस असंख्यात लोकमात्र भागहार संभव होनेके समयमें मोहका सबसे थोड़ा पत्यका असंख्यातवां भागमात्र, उससे असंख्यातगुणा तीन घातियाओंका, उससे असंख्यातगुणा नामगोत्रका, उससे साधिक वेदनीयका स्थितिबन्ध होता है । उससे परे संख्यातहजार स्थितिबन्ध जानेपर मोहका थोड़ा पत्यके असंख्यातवें भागमात्र, उससे असंख्यातगुणा नामगोत्रका, उससे विशेष अधिक तीन घ.तियाओंका, उससे विशेष अधिक वेदनीयका स्थितिबन्ध होता है ॥ ३३१ ॥
मोहं वीसिय तीसिय तो वीसिय मोहतीसयाण कर्म । वीसिय तीसिय मोहं अप्पाबहुगं तु अविरुद्धं ॥ ३३२ ॥
मोहं वीसियं तीसियं ततो वीसियं मोहतीसियानां क्रमं ।
वीसियं तीसियं मोहं अल्पबहुकं तु अविरुद्धम् ॥ ३३२ ॥ अर्थ-उसके वाद संख्यातहजार स्थितिबन्ध जानेपर सबसे थोड़ा मोहका उससे असंख्यातगुणा नामगोत्रका उससे विशेष अधिक तीन घातिया और वेदनीयका स्थितिबन्ध होता है । उसके बाद संख्यातहजार स्थितिबन्ध जानेपर सबसे थोड़ा नामगोत्रका पल्यके असंख्यातवें भागमात्र उससे विशेष अधिक मोहका उससे विशेष अधिक तीन घातिया और वेदनीयका सितिबन्ध होता है। उसके वाद संख्यातहजार स्थितिबन्ध वीतनेपर