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- श्रीपञ्चास्तिकायसमयसारः । नयसे द्रव्य प्राणोंकर जीवै है. सो [इति] यह जीवनामा पदार्थ [भवति] होता है। सो यह जीवनामा पदार्थ कैसा है? [चेतयिता] निश्चय नयकी अपेक्षा अपने चेतना गुणसे अभेद एक वस्तु है. व्यवहारकर गुणभेदसे चेतनागुणसंयुक्त है. इस कारण जानने वाला है । फिर कैसा है ? [उपयोगविशेषितः] जाननेरूप परिणामोंसे विशेषितः कहिये लखा जाता है। जो यहां कोई पूछे कि चेतना और उपयोग इन दोनोंमें क्या भेद है ? तिसका उत्तर यह है कि-चेतना तो गुणरूप है. उपयोग उस चेतनाकी जाननरूप पर्याय है. यह ही इनमें भेद है। फिर कैसा है यह आत्मा ? [प्रभुः] आस्रव संवर बन्ध निर्जरा मोक्ष इन पदार्थोंमें निश्चय करके आप भावकोंकी समर्थतासंयुक्त है । व्यवहारसे द्रव्यकर्मोकी ईश्वरता संयुक्त है। इस कारण प्रभु है । फिर कैसा है? [कर्ता] निश्चय नयसे तो पौद्गलिक कर्मोंका निमित्त पाकर जो जो परिणाम होते हैं, तिनका कर्ता है। व्यवहारसे आत्माके अशुद्ध परिणामोंका निमित्त पाय जो पौद्गलीक कर्म परिणाम उपजते हैं तिनका कर्ता है । फिर कैसा है ? [भोक्ता] निश्चयनयसे तो शुभ अशुभ कर्मोंके निमित्तसे उत्पन्न हुये जे सुखदुःखमय परिणाम, तिनका भोक्ता है और व्यवहारसे शुभ अशुभ कर्मके उदयसे उत्पन्न जो इष्ट अनिष्ट विषय तिनका भोक्ता है । [च] फिर कैसा है ? [देहमात्रः] निश्चयनयसे यद्यपि लोकमात्र असंख्यात प्रदेशी है, तथापि व्यवहार नयकी अपेक्षा संकोचविस्तारशक्तिसे नाम कर्मके द्वारा निर्मापित जो लघु दीर्घ शरीर है, उसके परिमाण ही तिष्ठै है. इसकारण देहपरिमाण है । फिर कैसा है ? [न हि मूर्तः] यद्यपि व्यवहारकर कर्मनसे एक स्वभाव होनेसे मूर्तीक विभाव परिणामरूप परिणमता है. तथापि निश्चय स्वाभाविक भावसे अमूर्त है. फिर कैसा है ? [कर्मसंयुक्तः] निश्चयनयसे पुद्गल काँका निमित्त पाय उत्पन्न हुये जे अशुद्ध चैतन्य विभाव परिणामकर्म, उनकर संयुक्त है । व्यवहारसे अशुद्ध चैतन्य परिणामोंका निमित्त पाय जो हुये हैं पुद्गलपरिणामरूप द्रव्य कर्म, तिनकरके सहित है. ऐसा यह संसारी आत्माका शुद्ध अशुद्ध कथन नयोंकी विवक्षासे सिद्धान्तानुसार जान लेना । आगे मोक्षविषै तिष्ठे हुये जे आत्मा, तिनका उपाधिरहित शुद्ध स्वरूप कहा जाता है ।
कम्ममलविप्पमुक्को उहूँ लोगस्स अंतमधिगंता। सो सव्वणाणदरसी लहदि सुहमणिदियमणंतं ॥ २८॥
संस्कृतछाया. ....... - फर्ममलविप्रमुक्तं ऊर्ध्व लोकस्यान्तमधिगम्य ।
स सर्वज्ञानदर्शी लभते सुखमतीन्द्रियमनन्तम् ।। २८ ॥ पदार्थ-[यः] जो जीव [ कर्ममलविप्रमुक्तः ] ज्ञानावरणादिरूप द्रव्यकर्म भावकर्म कर सर्व प्रकारसे मुक्त हुवा है [सः] वह [ सर्वज्ञानदर्शी] सबका देखने जाननेवाला शुद्ध