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रायचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम्
अभाव है और गौरसके अभावसे दुग्धादि पर्यायोंका अभाव होता है. दोनों द्रव्यपर्यायोंमेंसे एकका अभाव होनेसे दोनोंका अभाव होता है, दोनोंमें एकता ( अभेद ) माननी योग्य है ।
आ द्रव्य और गुणमें अभेद दिखाते हैं ।
इसीप्रकार इन इसकारण इन
व्वेण विणा ण गुणा गुणेहिं दव्वं विणा ण संभवदि । अव्वदिरित्तो भावो दव्वगुणाणं हवदि तह्मा ॥ १३ ॥
संस्कृतछाया.
द्रव्येन विना न गुणा गुणैर्द्रव्यं विना न सम्भवति । अव्यतिरिक्तो भावो द्रव्यगुणानां भवति तस्मात् ॥ १३ ॥
पदार्थ – [ द्रव्येन विना ] सत्तामात्र वस्तुके विना [ गुणाः ] वस्तुको जनानेवाले सहभूतलक्षणरूप गुण [ न सम्भवति ] नहीं होते [ गुणैः बिना ] गुणोंके विना [द्रव्यं] द्रव्य [ न सम्भवति ] नहीं होता. [ तस्मात् ] तिस कारणसे [ द्रव्यगुणानां ] द्रव्य और गुणोंका [ अव्यतिरिक्तः ] जुदा नहीं है ऐसा [ भावः ] स्वरूप [ भवति ] होता है ।
भावार्थ - द्रव्य और गुणोंकी एकता ( अभिन्नता ) है अर्थात् पुद्गलद्रव्यसे जुदे स्पर्श रस गन्ध वर्ण नहीं पाये जाते. सो दृष्टान्त विशेषताकर दिखाया जाता है । जैसें एक आम (आम्रफल ) द्रव्य है और उसमें स्पर्श रस गन्ध वर्ण गुण हैं. जो आम्रफल न होय तो जो स्पर्शादि गुण हैं, उनका अभाव हो जाय. क्योंकि आश्रयविना गुण कहांसे होय ? और जो स्पर्शादि गुण नहीं होय तो आमका ( आम्रफलका ) अभाव होय क्योंकि गुणके विना आमका अस्तित्व कहां ? अपने गुणोंकर ही आमका अस्तित्व है । इसी प्रकार द्रव्य और गुणकी एकता ( अभेदता ) जाननी. यद्यपि किसी ही एक प्रकारसे कथनक अपेक्षा द्रव्य और गुणमें भेद भी है, तथापि वस्तुस्वरूपकर तो अभेद ही है |
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आगें जिसके द्वारा द्रव्यका स्वरूप निराबाध सधता है, ऐसी स्यात्पदगर्भित जो सप्तभङ्गिवाणी है, उसका स्वरूप दिखाया जाता है ।
सिय अस्थि णत्थि उहयं अव्वन्त्तव्वं पुणो य तत्तिदयं । दव्वं खु सत्तभंगं आदेसवसेण संभवदि ॥ १४॥
संस्कृतछाया.
स्यादस्ति नास्त्युभयमवक्तव्यं पुनश्च तत्रितयं ।
द्रव्यं खलु सप्तभङ्गमादेशवशेन सम्भवति ॥ १४ ॥
पदार्थ – [ खलु ] निश्चयसे [ द्रव्यं ] अनेकान्तस्वरूप पदार्थ [ आदेशवशेन ] विवक्षाके वशसें [ सप्तभङ्गं ] सातप्रकारसे [सम्भवति ] होता है । वे सात प्रकार कौन कौनसे हैं सो कहते हैं, – [ स्यात् अस्ति ] किस ही एक प्रकार अस्तिरूप है . [ स्यात्
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