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तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम्.
भाष्यसहितम्.
(श्रीमदुमास्वातिविरचितम्.) जैनदर्शनका मूलभूत तत्त्वार्थसूत्र है. यह उसी प्रकार है, जिसप्रकार अन्य पीमांसक, नैयायिकादि दर्शनोंके दर्शनसूत्र हैं. तत्त्वार्थसूत्र भगवान् उमावा(ति)मीका बनाया हुआ है. जो विक्रमकी प्रथमशताब्दीमें हो गये हैं. इस मन्थको दिगम्बर श्वेताम्बरादि सम्पूर्ण जैनी मानते हैं. दोनों पक्षोंके आचाय?के गन्धिहस्ति महाभाष्य, श्लोकवार्तिकालंकार, राजवार्तिकालंकार, सर्वार्थसिद्धि, गजगन्धिहस्ति महाभाष्य, आदि बड़े २ भाष्य और टीकायें हैं, उन्हींमेंसे यह एक तत्त्वार्थाधिगमभाष्य है. तत्त्वार्थसूत्रके कर्ता श्रीमदुमास्वातिआचार्य ही इसके कर्ता हैं, ऐसा सर्वत्र प्रसिद्ध है. श्वेताम्बरसम्प्रदायमें यह ग्रन्थ विशेष मान्य गिना जाता है. ग्रन्थकी उत्तमता एकबार आयंत पठन करनेसे ही विदित हो सक्ती है, हमारे लिखनेसे नहीं. इसकारण जैनतत्त्वके जाननेकी इच्छा रखनेवालोंको यह ग्रन्थ अवश्य अवलोकन करना चाहिये. जनधर्मके प्रायः सम्पूर्ण मान्य पदार्थोंका इसमें विवेचन है. यह ग्रन्थ अभीतक अप्राप्य था, हमने बड़े परिश्रमसे प्राप्त करके और विद्वद्वर्य पंडित ठाकुरप्रसादजी व्याकरणाचार्यसे सरल हिन्दीभाषाटीका कराके तैयार कराया है, यह कमसे कम २५ फार्मका ग्रन्थ होगा. मूल्य रु. २) (डाकव्यय अलग)
सप्तभङ्गीतरङ्गिणी.
(श्रीमान् विमलदासजीप्रणीत.) इस ग्रंथमें सप्तभंगका उत्तमोत्तम स्वरूप दिखलाया गया है. मूल तथा पंडित ठाकुरप्रसादजीकृत सरल हिन्दी भाषानुवादसहित उत्तम पद्धतिसे छपाकर तैयार कराया है.
मूल्य रु. १) (डाकव्यय अलग) परमश्रुत-प्रभावकमंडल,
जौहरीबाजर, बम्बई.