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ज्ञेय की ज्ञानरूपता, ज्ञानसजातीयता और असत्यता के पक्षों में जिन दोषों का निर्देश ३६वें श्लोक में किया गया है उनका इस श्लोक में संक्षिप्त रूप से संकलन कर दिया गया है । श्लोक का अर्थ इस प्रकार है।
ज्ञेय ज्ञानस्वरूप है अर्थात् ज्ञान से अभिन्न है, इस प्रथम पक्ष के साधन में असिद्धि, व्यभिचार और बाध दोष होते हैं, क्योंकि ज्ञान के साथ ही नियमत: उपलब्ध होने के कारण, सब ज्ञान का विषय न होकर नियत ज्ञान का ही विषय होने के कारण तथा ज्ञान से सम्बद्ध होने के कारण ज्ञेय ज्ञान से अभिन्न है। इस प्रकार प्रथम पक्ष के साधन का उपक्रम होने पर यह विचार उठता है कि इस अनुमान के द्वारा ज्ञेयत्वावच्छेदेन (ज्ञेयमात्र में) ज्ञान का अभेद साध्य है अथवा ज्ञेयत्वसामानाधिकरण्येन (किसी ज्ञेयविशेष में ) ? यदि ज्ञेयमात्र में ज्ञान का अभेद साध्य होगा तो न्याय आदि मतों में बाध हो जायगा, क्योंकि उस मत में घट, पट आदि ज्ञेय वस्तुओं में ज्ञान का अभेद नहीं है और यदि किसी ज्ञेयविशेष में ज्ञान के अभेद का साधन किया जायगा तो ज्ञानरूप ज्ञेय में ज्ञान का अभेद सिद्ध रहने के कारण सिद्धसाधन हो जायगा। ___ इसी प्रकार यह भी विचार उठता है कि ज्ञान शब्द से साकार ज्ञान अभिप्रेत है अथवा निराकार ? यदि साकार ज्ञान का ग्रहण होगा तो न्याय आदि मतों में ज्ञान की साकारता अमान्य होने के कारण "ज्ञेय ( साकार ) ज्ञान से अभिन्न है" इस अनुमान में साध्याप्रसिद्धि-रूप दोष होगा और "( साकार ) ज्ञान ज्ञय से अभिन्न है" इस अनुमान में पक्षाप्रसिद्धि रूप दोष होगा। और यदि ज्ञान शब्द से निराकार ज्ञान का ग्रहण अभिप्रेत होगा तो साकारज्ञानवादी बौद्ध के मत में उक्त क्रम से उक्त दोनों दोष होंगे।
इसी प्रकार ज्ञेय शब्द के अर्थ का विचार करने पर भी ऐसे ही दोष प्रसक्त होते हैं। जैसे ज्ञेय से ज्ञानाकारस्वरूप वस्तु का ग्रहण करने पर निराकारज्ञानवादी नैयायिक आदि के मत में उक्त अनुमानों में क्रम से साध्याप्रसिद्धि और पक्षाप्रसिद्धि दोष होंगे, और ज्ञेय शब्द से ज्ञान से भिन्न वस्तु का ग्रहण करने पर विज्ञानवादी बौद्ध के मत में ज्ञान से भिन्न वस्तु अमान्य होने के कारण उक्त अनुमानों में उसी क्रम से उक्त दोनों दोष होंगे। ___जो वस्तुयें नियमतः साथ ही उपलब्ध होती हैं वे परस्पर अभिन्न होती हैं, उक्त अनुमान की इस मूलव्याप्ति में व्यभिचार दोष है, क्यों क समूहालम्बन ज्ञान के दो आकार नियमतः साथ ही उपलब्ध होते हैं पर वे परस्पर अभिन्न नहीं होते।