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________________ तादात्म्य व्यवहृत होता है उसका कारण उस पदार्थ की जातिगत एकता नहीं किन्तु कुण्डल और अङ्गद इन दोनों अवस्थाओं में अनुगत, अक्षुण्ण भाव से स्थित रहने वाले सुवर्णद्रव्य की एकता ही है । ___यदि उसका कारण जातिगत एकता होती तो "जिस जाति का पदार्थ कुण्डल रूप में था उसी जाति का पदार्थ अङ्गद रूप में परिवर्तित हो गया" अथवा "कुण्डल और अङ्गद ये एकजातीय पदार्थ की दो अवस्थायें हैं' इसी प्रकार का व्यवहार होता न कि 'जो कुण्डल के रूप में था वही अङ्गद के रूप में बदल गया" अथवा "कुण्डल और अङ्गद ये एक ही सुवर्णद्रव्य की दो अवस्थायें हैं" ऐसा व्यवहार होता, यह तो कुण्डल और अङ्गद इन दोनों अवस्थाओं के आधार द्रव्य की एकता ही से सम्भव है। ___ स्वद्रव्यतामूलक तादात्म्य का प्रतिनिधित्व एकजातीयता नहीं कर सकती, इसी लिये "द्रव्य रूप वाला है-द्रव्यं रूपवत्" इस प्रकार द्रव्यमात्र में रूपवान् के तादात्म्य का व्यवहार नहीं होता, किन्तु "द्रव्य गुण वाला है- द्रव्यं गुणवत्" इस प्रकार द्रव्यमात्र में गुणवान् के तादात्म्य का व्यवहार होता है, क्योंकि रूपवान् के तादात्म्य का मूल रूपद्रव्यता द्रव्यमात्र में नहीं है परन्तु गुणवान् के तादात्म्य का मूल गुणद्रव्यता द्रव्यमात्र में है। ___ यदि रूपवान् के तादात्म्य का मूल रूपद्रव्यता के बदले रूपवान् की सजातीयता को माना जायगा तो द्रव्यत्व जाति के द्वारा रूपवान् की सजातीयता सभी द्रव्यों में रहने के कारण रूपवान् का तादात्म्य द्रव्यमात्र में प्राप्त होगा। फलतः द्रव्यमात्र में रूपवान् के तादात्म्य-व्यवहार की प्रसक्ति अनिवार्य हो जायगी। यहाँ इस प्रश्न का उठना स्वाभाविक है कि द्रव्यमात्र में रूपद्रव्यता के अस्तित्व का अस्वीकार और गुणद्रव्यता के अस्तित्व का स्वीकार क्यों किया जाता है ? ___ इसका उत्तर समझने के लिये स्वद्रव्यता का अर्थ समझना होगा, जो इस प्रकार है। ___ जगत् के आगमापायी भावों का जनन और निधन अथवा प्राकट्य और तिरोधान जिन आधारभूत भावों में होता है उन्हें 'सामान्य' और आगमापायी भावों को 'विशेष' शब्द से व्यवहृत करने पर स्वद्रव्यता का अर्थ होगा स्वात्मक विशेष की अपेक्षा सामान्यरूपता। और यदि आगमापायी भावों को 'पर्याय' और उनके आधारभूत भावों को 'द्रव्य' शब्द से व्यवहृत किया जायगा तो स्वद्रव्यता का अर्थ होगा स्वात्मक पर्याय की अपेक्षा द्रव्यरूपता, इसी प्रकार
SR No.022404
Book TitleJain Nyaya Khand Khadyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChowkhamba Sanskrit Series
Publication Year1966
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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