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विभिन्न कालों के द्वारा भेद स्वीकार करने भेदाभेद की एकनिष्ठता स्वीकृत हो जाने से स्याद्वाद सिद्धान्त का अङ्गीकरण फलित हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रत्यभिज्ञा-रूप ज्ञान का सप्तभङ्गी द्वारा समर्पित होने वाले वस्तुस्वरूप की प्रकाशकता प्राप्त हो जाती है ।
तद्धेम कुण्डलतया विगतं यदुच्चै.
रुत्पन्नमङ्गदतयाऽचलितं स्वभावात् । लोका अपीदमनुभूतिपदं स्पृशन्तो
___न त्वां श्रयन्ति यदि तत्तदभाग्यमुग्रम् ॥ २८॥ ___ जो सुवर्ण पहले कुण्डल के आकार में रहता है और बाद में जब अङ्गद के प्रकट आकार में उत्पन्न होता है तब अपने पूर्व आकार का त्याग कर देता है, अर्थात् अपने पूर्ववर्ती कुण्डलरूप से निवृत्त हो जाता है किन्तु अपने नैसर्गिक सुवर्णत्व 'सुवर्णद्रव्यात्मकता' का त्याग नहीं करता, अर्थात् विभिन्न रूपों से जनन और नाश का आस्पद होते रहने पर भी अपने स्थायी रूप में सुरक्षित ही रहता है। कहने का भाव यह है कि प्रत्येक वस्तु उत्पत्ति, विनाश और स्थायित्व इन तीन धर्मों से सदा सम्पन्न रहती है, अर्थात् आगन्तुक रूप से उत्पन्न, पूर्व गृहीत रूप से विनष्ट और द्रव्य रूप अर्थात् पूर्वोत्तर आकारों के आधार रूप से स्थिर रहती है, जैसे सुवर्णद्रव्य कुण्डल की निवृत्ति और अङ्गद की उत्पत्ति होने की दशा में भी ज्यों का त्यों बना रहता है।
इस प्रसङ्ग में यह प्रश्न उठ सकता है कि कुण्डल आदि से अतिरिक्त सुवर्णद्रव्य का अस्तित्व ही असिद्ध है अतः कुण्डलात्मक सुवर्णद्रव्य का नाश और अङ्गदात्मक सुवर्णद्रव्य की उत्पत्ति होती है, बस, इतना ही ठीक है; किन्तु यह, कि इन दोनों से भिन्न कोई सुवर्णनामक तृतीय द्रव्य इन दोनों में अनुस्यूत है, नितान्त असत्य है, हाँ उक्त दोनों भूषणों में सुवर्णत्व की प्रतीति होती है पर वह तो उन दोनों में एक सुवर्णत्व जाति को स्वीकार कर लेने से उपपन्न हो सकती है, इस लिये कुण्डल, अङ्गद आदि में अनुस्यूत सुवर्ण के दृष्टान्त से विभिन्न पर्यों के एक स्थिर आधार का साधन नहीं हो सकता।
__ इस प्रश्न का उत्तर बहुत ही सरल और स्पष्ट है, वह यह कि कुण्डल, अङ्गद आदि विभिन्न अवस्थाओं में जो सुवर्णभाव का अनुभव होता है; उसकी उपपत्ति सुवर्णत्व-जाति द्वारा नहीं हो सकती है क्योंकि कुण्डलव आदि के साथ सांकर्य हो जाने से सुवर्णत्व को जातिरूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता । सांकर्य इस प्रकार है- रजत से बने कुण्डल में कुण्डलत्व है किन्तु उसमें सुवर्णत्व नहीं है और सुवर्णत्व पिण्डभूत सुवर्ण या स्वर्णरचित अङ्गद में है किन्तु उसमें