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यहांतक आन्दोलन मचा देते हैं कि 'यह पण्डित नास्तिक बन गया इत्यादि सब कुछ कहते हैं । हमको स्मरण है कि काशीपुरी के प्रसिद्ध वैदिक विद्वान् श्रीराममिश्रशास्त्री जी ने जिस समय अपनी वक्तृता में जैन दर्शन के संबंध में अपने उच्च विचार प्रकट किये थे (उस व्याख्यान का सारांश इस निबंध में दे भी दिया है ) उस समय काशी के कई वैदिक, शास्त्री जी पर नाराज हुए थे और कइयों ने शास्त्री जी से यह भी कहा था कि आप सरीखे विद्वान् ने जैन दर्शन को उच्च श्रेणी का दर्शन कहा, यदि यह बात सत्य भी हो तो आप को प्रशंसा नहीं करनी चाहिये परन्तु शास्त्री जी सत्य वक्ता होने से उन को यह उत्तर दिया कि जो मुझे सत्य मालूम हुआ वही मैंने कहा है। खेद के साथ लिखना पड़ता है कि शास्त्री जी के परलोक वास से जैन समाज को बड़ी हानि उठानी पड़ी है।
जिस समय लो. तिलक महोदय ने जैन दर्शन के संबंध में अपने उच्च विचार प्रकट किये थे (उसका सारांश इस ग्रंथ में दे भी दिया है) उस समय महाराष्ट्रदेशीय एक दो ब्राह्मण तिलक पर भी कटाक्ष किये विना नहीं रह सके । हाल में थोड़े ही दिनों की बात है कि इलाहाबाद (प्रयाग) की सरस्वती नाम की मासिक पत्रिका में वेद विख्यात जी की ओर से 'वेद' शीर्षक, एक लेख निकला था, उसमें आपने वेदों के संबन्ध में तटस्थरीत्या अपने विचार प्रकट किये थे ( उक्त लेख का बहुत कुछ सारांश इस निबंध में दे भी दिया है) किन्तु उक्त लेख प्रकाशित होते ही कई वैदिक महाशय वेदविख्यात जी पर टूट पड़े, और वर्तमान समाचार पत्रों द्वारा मनमाने शब्दों में टीका करने लग गये । पाठकगण ! ईश्वरवादी कैसे पक्षपाती होते हैं यह आप उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट समझ सकते हैं। ___यह निबंध मैंने किसी के भी मनः कलुषित करने को अथवा किसी की निन्दा करने को नहीं लिखा है किन्तु जगत् किसी का रचा हुआ है या अनादि ? और इस वारे में जैन दर्शन का क्या अभिप्राय है यह संस्कृत को न जाननेवाले हिन्दी भाषा के प्रेमियों को दिखाने के हेतु से लिखा है और आशा भी है कि हिन्दी पढ़नेवाले अवश्य इससे कुछ लाभ उठावेगे।
प्रस्तुत में कई जैनी कहलाकर भी अन्य धर्मियों के गाढ सह