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यात्राकी. आपके उपदेशसे जबलपुर के श्रावकोंने श्वेतांबरजैन पाठशाला स्थापित की और एक महीने तक आपको रक्खा. सं० १९६३ में आपने अपने लघु शिष्यको शहर धुलियामें दक्षिा दी. दीक्षा महोत्सव का कुल खर्च श्रीमान श्रावग योगीलालजी गुलाबचंदजी खिवैमराने किया. इन दिनों में वि. न्या. श्रीमान् शांति विजयजी मुनि महाराज भी शहर घुलियेमे थे दीक्षा की कुल विधी मुनि श्री के आज्ञानुसारही की गई. पाठक ? मुनिश्री लेखक के विद्यागुरु है इस लिये आपने अनुग्रह कर दक्षिा महोत्सव में सम्मिलित हुवे. दाक्षाका उत्सव प्रशंसनीय हआ शहर धुलियेके कुल श्रावक-इस उत्सव में सामिलथे. उक्त उत्सव के थोडेडी दिनों के पश्चात-वेदनीय कर्मोदय से चरित्रनायक उपाश्रयकी सिढीयोंसे उतरते हुवे पग चुक जानेसे गिर पड़े, इससे आपके डावे पगको बहुत लगी जिससे हड्डीने स्थान छोड़ देनेसे पग सुज गया और बहुत तकलीफ होने लगी. चलना फिरना बंध हो गया. अनेक डाक्टरों और वैद्योंके इलाज करनेपर वेदना बेशक आराम हो गई किन्तु हड्डी फिर पिछी स्थानपर नहीं आसकी. चलना फिरना जो बंध हो गया था वह दुरस्त न हो सका. "वृद्धवयके कारण लोहू कम जोर हो जानेसे पग शक्ति नहीं पकड़ता इससे• यह ऐसीही हड्डी रहेगी" बड़े बड़े विद्वान डाक्टरोका यह अभिप्राय होनसे उपाय करना बंध कर दिया. तीन मास के पश्चात् धूलिये से रेल्वेद्वारा आपको खामगांव ले आये. ततपश्चात् चलना-फिरना बंध हो जानेके कारण शेष कालमें विचरना बंधकर दिया. गत वर्षके चातुमासमें अर्थात् सं० १९६५ मे अपने शिष्य के समीप आकोले पधारे आपके प्रभावसे आकोले में कई बातें अच्छी हुई. इसी वर्ष में आकोलेके श्रावकोंने एक जैन पाठशाला स्थापितकी. थोडेदिन पश्चात् आप पीछे खामगांव पधार गये प्रस्तुत आपका विचार खामगांवमे ही रहनेका है इस समय आपकी १ वर्ष की वय है. नेत्रोंका तेज जैसा का वैसा बना हुवा है. दांत सब कायम हैं. आपको शास्त्र लिखनेका प्रथमसही बहुत शौक है. आजभी करीब तनिसौ श्लोक एक दिन में लिख सकते हैं. अक्षर आपके मोतियोंके दानोंके समान सुन्दर