________________
( ५ )
वानकी यात्रा की, वहांसे अहमदाबाद होकर संघ बीकानेरको लौट आया. इस यात्रामें लगे थे. ऐसा मास सुमार आठ गौरवशाली संघ बीकानेर से आज पर्यन्त कभी किसीने नहीं निकाला. यह श्रीमान केवलचन्द्रजी महाराजके ही उपदेशका फल मानना चाहिये.
सं० ० १९१८ का चातुर्मास आपका बीकानेर में ही हुआ. तदनंतर विहार करके शहर इन्दोर पधारे, और सं० १९१९ का चौमासा इन्दोरहीमें हुआ. इन्दोर महाराज श्रीमान् होलकर सरकार श्री तकुजीराव बड़ेही गुणज्ञ और साधु संतके प्रेमी थे, इस से प्रेम पूर्वक हमारे चरित्र नायक से कईवार मिले. इन्दोर सरकारने आपसे कईवार कहा गांव जहांगिर अथवा द्रव्यादि जिस बातकी आपको इच्छा हो वह आपके लिये तैयार है किन्तु आपकी ओरसे उत्तर यही मिलता रहा कि बदौलत देव गुरु धर्म के प्रतापसे सब कुछ है. मनुष्य में यह गुण (निलभता ) आना सहज नही है. इन्दोरसे रवाना होकर आप बन्हानपुर पधारे उससमय पीरचंदजी कोठारीने ज्ञान ध्यान के लिये ठहरनेकी बीनति की इस से आप एक महीने तक बन्हानपुर ठहरे वहांसे रवाना होकर मलकापुर, खामगांव, बालापुर होते हुवे शिरपुर अन्तरिक्ष पार्श्वनाथजी की या त्रा कर मुंबई पुरीको पधारे सं० १९२० का चौमासा आपका बंबई मे हुआ. गणेसदास कृष्णाजीके दुकान के मुनीम श्रावक श्री केवलचंद्रजी सुराणेने बहुत भक्ति की. चातुर्मास समाप्त होने पर आप पुना पधारे और सं० १९२१ का चातुर्मास आपका पुनेमे हुआ. पुनेसे आप खामगांव पधारे यहांका मालूम होनेसे जलवायू अच्छा चातुर्मास आपने खामगांव मेही किये. यह स्थान निरुपद्रव और एकांत होनेके कारण इन दिनों में आपने वर्द्धमान आदि जैन विद्याओंका आराधन किया. आपके सत्यशीलादिगुणोसे बराड़ प्रांत के स्वपरधर्मी सब कोई दर्शनोंके अभिलाषी थे. और प्रस्तुत भी आपका नाम प्रसिद्ध हैं. सं० १९३० में आपको आचार्य श्री केसरी सिंहसूरिजी का पोष्ट द्वारा एक पत्र मिला उसमे यह समाचार थे कि "आप सरीखे
नव