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जो गृहवास त्यागकर धर्मक्रिया करना चाहता है उसकेलिये तीर्थकरों ने यतिधर्म बतलाया और जिनसे सांसारिक चीजों का सर्वथा त्याग नहीं हो सकता उनके लिये श्रावक धर्म बतलाया है ।
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तीर्थकरों का यह उपदेश है कि धर्म करो, सुस्त मत बैठो, जिन्दगी के घड़ीभर का भी भरोसा नहीं है । इसलिये सत्यदर्शी बनो, आत्मा परतन्त्रता से छूटे ऐसा मार्ग स्वीकारकरो और स्वतन्त्र बनाओ यही संसार में सार है ।
प्रस्तुत भारत के अनेक विद्वान देश की स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिये आन्दोलन कर रहे हैं, अथाह परिश्रम व कष्ट उठा रहे हैं उनका यह विचार है कि देश की उन्नति हो और हमारे भारतवर्षीय जनसमूह सुखी सौभाग्यशाली बने ! उनसे हमारा निवेदन है कि जैसे आप देश की स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिये दत्तचित्त बने हैं वैसेही आप आत्मा की स्वतन्त्रता अर्थात् स्वाधीनता प्राप्ति करने का भी प्रयत्न क्यों नहीं करते ! |
ईश्वर को जगत् का कर्त्ता हर्ता मानने वाले और ईश्वरीय ( सङ्केत) इच्छा से कार्य का होना न होना माननेवाले लोग हमारी समझ से हमेशाही के लिए परतंत्र है अर्थात् ईश्वर के अथवा ईश्व रीय इच्छा के आधीन ही हैं। देश की स्वतन्त्रता से मनुष्य प्राणिओं को पौगलिक ( शारीरक ) सुख प्राप्त होने का संभव है परंतु आत्मा की स्वतन्त्रता से आत्मिक सुख क्षणिक नहीं किन्तु हमेशा के लिये है । किंबहुना आत्मा को स्वतन्त्रता प्राप्त करना है अर्थात् जन्म जन्म की परतन्त्रता को नष्ट करना है अर्थात् मोक्ष प्राप्ति करना है । सच्ची स्वतन्त्रता वही है जो शुभाशुभ कर्मों के वशीभूत हुए आत्मा को सव कर्म बंधनों से छुड़ाकर आत्मिक सुखों में मग्न करना । जिसने आत्मा की स्वतन्त्रता प्राप्त करली है उसकेलिये न कोई शत्रु है और न कोई मित्र | और स्वदेशी विदेशी भी समान हैं इसीलिये मैं अपने भारतवर्षीय सब मित्रों से यही सूचित करता हूँ सच्ची स्वतन्त्रता चाहिये तो ईश्वर को जगत्कर्ता
कि यदि आप को मानना छोड़ दो