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________________ ५३ समयसारः । धनं पूर्वमासीन्धनस्याग्निः पूर्वमासीदग्नेरग्निः पूर्वमासीदिधनस्येंधनं पूर्वमासीन्नाग्नेरिंधनं पुनर्भविष्यति धनस्याग्निः पुनर्भविष्यत्यग्नेरग्निः पुनर्भविष्यतींधनस्सेंधनं पुनर्भविष्यतीति कस्यचिदग्नावेव सद्भूताग्निविकल्पवन्नाहमेतदस्मि नैतदहमस्त्यहमंहमस्म्येतदेतदस्ति न ममैतदस्ति नैतस्याहमस्मि ममाहमस्म्येतस्यैतदस्ति न ममैतत्पूर्वमासीन्तस्याहं पूर्वमासं भयभीतेन मोक्षार्थिना समस्तरागादिविभावरहिते शुद्धद्रव्यगुणपर्याये स्वरूपे निजपरमात्मनि भावना कर्त्तव्येत्यभिप्रायः । एवं स्वतंत्रव्याख्यानमुख्यत्वेन तृतीयस्थले गाथात्रयं गतं ॥ अथ यथा कोप्यप्रतिबुद्धः अग्निरिंधनं भवति इंधनमग्निर्भवति अग्निरिंधनमासीत् इंधनमग्निरासीत् अग्निरिंधनं भविष्यति इंधनमनिर्भविष्यतीति वदति तथा यः कालत्रयेपि देहरागादिपरद्रव्यमात्मनि योजयति सोऽप्रतिबुद्धो बहिरात्मा मिथ्याज्ञानी भवतीति प्ररूपयतिः-अहमेदं एदमहं अहं इदं परद्रव्यं इदं अहं भवामि । अहमेदस्सेव हि होमि मम एवं अहमस्य संबंधी भवामि मम संबंधीदं । अण्णं जं परद्रव्यं देहादन्यद्भिन्नं पुत्रकलत्रादि यत्परद्रव्यं सच्चित्ताचित्तमिस्सं वा सचित्ताचित्तमिश्रं वा । तच्च गृहस्थापेक्षया सचित्तं स्यादि, अचित्तं सुवर्णादि, मिश्रं साभरणस्यादि । अथवा तपोधनापेक्षया सचित्तं छात्रादि, अचित्तं पिच्छकमंडलुपुस्तकादि मिश्रमुपकरणसहितछात्रादि । अथवा सचित्तं रागादि अचित्तं पुद्गलादि पंचद्रव्यरूपं मिश्रं गुणस्थानजीवमार्गणादिपरिणतसंसारिजीवस्वरूपमिति वर्तमानकालापेक्षया गाथा गता । आसीत्यादि । आसि मम पुत्वमेदं आसीत् मम पूर्वमेतत् अहमेदं असत्यार्थ आत्मविकल्प करे कि मैं यह परद्रव्य हूं और यह परद्रव्य है वह मैं हूं, यह मेरा परद्रव्य है इस परद्रव्यका मैं हूं, मेरा यह पहले था मैं इसका पहले था, मेरा यह आगामी होगा मैं इसका आगामी होऊंगा। ऐसे झूठे विकल्पकर अप्रतिबुद्ध (अज्ञानी) पहचाना जाता है। तथा अग्नि है वह ईधन नहीं है ईंधन है वह अग्नि नहीं है, अग्नि है वह अग्नि ही है ईंधन है वह ईंधन ही है, अग्निका ईधन नहीं है ईंधनकी अग्नि नहीं है अग्निकी ही अग्नि है ईंधनका ईंधन है, अग्निका ईंधन पहले हुआ नहीं ईंधनकी अग्नि पहले हुई नहीं अग्निकी अग्नि पहले थी, ईंधनका ईंधन पहले था । तथा अग्निका ईंधन आगामी नहीं होगा, ईंधनकी अग्नि आगामी नहीं होगी अग्निकी अग्नि ही आगामी होगी, ईंधनका ईंधन ही आगामी होगा । इसतरह किसीके अग्निमें ही सत्यार्थ अग्निका विकल्प जिसप्रकार हो जाता है उसीतरह मैं यह परद्रव्य नहीं हूं परद्रव्यका परद्रव्य ही है तथा यह परद्रव्य मुझस्वरूप नहीं है मैं तो मैं ही हूं परद्रव्य है वह परद्रव्य ही है तथा मेरा यह परद्रव्य नहीं है इस परद्रव्यका मैं नहीं हूं अपना ही मैं हूं परद्रव्यका परद्रव्य है। तथा इस परद्रव्यका मैं पहले नहीं हुआ यह परद्रव्य मेरा पहले नहीं था, अपना मैं ही पूर्वथा परद्रव्यका परद्रव्य पहले था । तथा यह परद्रव्य मेरा आगामी न होगा उसका मैं आगामी न होऊंगा मैं अपना ही आगामी
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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