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________________ ४६ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । सममात्मा प्रमाणतः ॥ १६ ॥ दर्शनज्ञानचारित्रैस्त्रिभिः परिणतत्वतः । एकोपि त्रिखभावत्वाद् व्यवहारेण मेचकः ॥१७॥ परमार्थेन तु व्यक्तज्ञातृत्वज्योतिषैककः । सर्वभावांतरध्वंसिस्वभावत्वादमेचकः ॥ १८ ॥ आत्मा नश्चिंतयैवालं मेचकामेचकत्वयोः । दर्शनज्ञानचारित्रः साध्यसिद्धिर्न चान्यथा ॥ १९॥ (॥ १६ ॥) • जह णाम को वि पुरिसो रायाणं जाणिऊण सद्दहदि । तो तं अणुचरदि पुणो अत्थत्थीओ पयत्तेण ॥ १७ ॥ एवं हि जीवराया णादवो तह य सद्दहेवो । अणुचरिद्ववो य पुणो सो चेव दु मोक्खकामेण ॥ १८॥ यथा नाम कोपि पुरुषो राजानं ज्ञात्वा श्रद्दधाति । ततस्तमनुचरति पुनरार्थिकः प्रयत्नेन ॥ १७॥ एवं हि जीवराजो ज्ञातव्यस्तथैव श्रद्धातव्यः ।। अनुचरितव्यश्च पुनः स चैव तु मोक्षकामेन ॥ १८॥ यथा हि कश्चित्पुरुषोऽर्थार्थी प्रयत्नेन प्रथममेव राजानं जानीते ततस्तमेव श्रद्धत्ते ततस्तपुनर्जानीहि त्रीण्यपि अप्पाणं चेव शुद्धात्मानं चैव णिच्छयदो निश्चयतः शुद्धनिश्चयतः । अयमत्रार्थः-पंचेंद्रियविषयक्रोधकषायादिरहितनिर्विकल्पसमाधिमध्ये सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रत्रयमस्तीति ॥ १६ ॥ अथ गाथाद्वयेन तामेव भेदाभेदरत्नत्रयभावनां दृष्टांतदाष्टीताभ्यां समर्थयति;जह यथा णाम अहो स्फुटं वा कोबि कोपि कश्चित् पुरिसो पुरुषः रायाणं स्वभाव है। इसलिये अमेचक है शुद्ध एकाकार है ॥ भावार्थ-भेददृष्टिको गौणकर अभेददृष्टिकर देखाजाय तब आत्मा एकाकार ही है वही अमेचक है। आगे प्रमाणनयकर मेचक अमेचक कहा सो इस चिंताको मेंट जैसें साध्यकी सिद्धि हो वैसे करना यह "आत्मन" इत्यादिसे कहते हैं । अर्थ-यह आत्मा मेचक है भेदरूप अनेकाकार है तथा अमेचक है अभेदरूप एकाकार है । ऐसी चिंताकर तो पूरा पड़े। साध्य आत्माकी सिद्धि तो दर्शन ज्ञान चारित्र-इन तीनोंभावोंकर ही है दूसरीतरह नहीं यह नियम है ॥ भावार्थ-आत्माकी शुद्धद्रव्यार्थिकनयकर सिद्धि हुई । ऐसा शुद्ध स्वभाव साध्य है वह पर्यायार्थिकस्वरूप व्यवहारनयकर ही साधा जाता है इसलिये ऐसा कहा है कि भेदाभेदकी कथनीसे क्या जिसतरह साध्यकी सिद्धि हो वैसे करना । व्यवहारी लोक पर्यायमें ही समझते हैं । इसकारण दर्शन ज्ञान चारित्र तीनों परिणाम ही आत्मा है । इसतरह भेद प्रधानकर अभेदकी सिद्धि करना कहा है ॥१६॥ आगे इसी प्रयोजनको दो गाथाओंमें दृष्टांतकर कहते हैं;-[यथा नाम] जैसे [ कोपि ] कोई [ अार्थिकः पुरुषः] धनका चाहनेवाला पुरुष [राजानं ] राजाको [ ज्ञात्वा ] जानकर [ श्रद्दधाति ] श्रद्धान करता है
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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