SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 546
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अधिकारः ९] समयसारः। ५३३ न खलु द्रव्यलिंगं मोक्षमार्गः शरीराश्रितत्वे सति परद्रव्यत्वात् । तस्माद्दर्शनज्ञानचारित्राण्येव मोक्षमार्गः, आत्माश्रितत्वे सति खद्रव्यत्वात् ॥ ४१०॥ यत एवंतह्मा जहित्तु लिंगे सागारणगारएहिं वा गहिए । दसणणाणचरित्ते अप्पाणं जुंज मोक्खपहे ॥ ४११ ॥ ___ तस्मात् हित्वा लिंगानि सागारैरनगारैर्वा गृहीतानि ।। दर्शनज्ञानचारित्रे आत्मानं युंक्ष्व मोक्षपथे ॥ ४११॥ यतो द्रव्यलिंगं न मोक्षमार्गः, ततः समस्तमपि द्रव्यलिंगं त्यक्त्वा दर्शनज्ञानचारित्रे विति शुद्धबुद्धैकस्वभाव एव परमात्मतत्त्वश्रद्धानज्ञानानुभूतिरूपाणि सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग जिना वदंति कथयति ॥ ४१० ॥ यत एवं;-तह्मा जहित्तु लिंगे सागारणगारिएहि वा गहिदे यस्मात्पूर्वोक्तप्रकारेण सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग जिनाः प्रतिपादयंति तस्मात्त्यक्त्वा । कानि? निर्विकारस्वसंवेदनरूपभावलिंगरहितानि सागारानगारवर्गः समूहै:-गृहीतानि बहिरंगाकारद्रव्यलिंगानि । पश्चात् किं कुरु ? दंसणणाणचरिते है इसलिये आत्माके देह मोक्षका मार्ग नहीं है । परमार्थसे अन्यद्रव्यका अन्यद्रव्य कुछ नहीं करता यह नियम है ॥ ४१०॥ ___ आगे कहते हैं यदि ऐसा है कि द्रव्यलिंगमोक्षमार्ग नहीं तो इसकारण ऐसा करना यह उपदेश है;-जिसकारण द्रव्यलिंग मोक्षमार्ग नहीं है [ तस्मात् ] इस कारण [सागारैः ] गृहस्थोंकर [ वा ] अथवा [अनगारैः ] गृहत्यागी मुनियोंकर [गृहीतानि लिंगानि ] ग्रहण किये गये लिंगोंको [जहित्वा ] छोड़कर [आत्मानं] अपने आत्माको [ दर्शनज्ञानचारित्रे ] दर्शनज्ञानचारित्रस्वरूप [ मोक्षपथे ] मोक्षमार्गमें [ युंक्ष्व ] युक्त करो । यह श्रीगुरुओंका उपदेश है ॥ टीका-जिस कारण द्रव्यलिंग मोक्षका मार्ग नहीं है इसकारण सभी द्रव्यलिंगोंको छोड़ दर्शन ज्ञानचारित्रमें ही आत्माको युक्त करना । क्योंकि यही मोक्षका मार्ग है ऐसा सूत्रका उपदेश है ॥ भावार्थ-यहां द्रव्यालिंगको छुड़ाके दर्शन ज्ञानचारित्रमें लगानेका वचन है सो यह सामान्य परमार्थ वचन है। कोई समझेगा कि मुनि श्रावकके व्रत छुड़ानेका उपदेश है । ऐसा नहीं है । जो केवल द्रव्यलिंगको ही मोक्षमार्ग जान भेष रक्खे उसको पक्ष छुड़ाया है कि वेषमात्रसे मोक्ष नहीं है, परमार्थरूप मोक्षमार्ग आत्माके दर्शन ज्ञानचारित्ररूप परिणाम हैं वे ही हैं । व्यवहार आचारसूत्र में कहे अनुसार जो मुनि श्रावकके बाह्यव्रत हैं वे व्यवहारकर निश्चयमोक्षमार्गके साधक हैं। उनको छुड़ाते नहीं परंतु ऐसा कहते हैं कि उनका भी ममत्व छोड़ परमार्थ मोक्षमार्ग में लगनेसे ही मोक्ष होता है केवल भेषमात्रसे मोक्ष नहीं है ऐसा जानना ॥ आगे इसी अर्थको दृढ
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy