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________________ अधिकारः ९ समयसारः। ५०५ वाचा च कायेन चेति १ न करिष्यामि न कारयिष्यामि न कुर्वतमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि मनसा च वाचा चेति २ न करिष्यामि न कारयिष्यामि न कुर्वतमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि मनसा च कायेन चेति ३ न करिष्यामि न कारयिष्यामि न कुर्वतमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि वाचा च कायेन चेति ४ न करिष्यामि न कारयिष्यामि न कुर्वतमप्यन्यं समनुज्ञास्यामि चैतन्यस्वभावमात्मानमेव संचेतये । नाहं केवलज्ञानावरणीयफलं भुंजे । किं तर्हि करोमि ! शुद्धचै नेवाला कहता है कि मोहके विलासकर फैला उदयको प्राप्त हुआ जो यह वर्तमान कर्म उस सबकी आलोचना करके सब कर्मोंसे चैतन्यस्वरूप आत्मामें मैं आप ही कर निरं. तर वर्तता हूं ॥ भावार्थ-वर्तमान कालमें आये हुए कर्मके उदयको ज्ञानी ऐसे विचारता है कि जो पहले बांधा था उसका यह कार्य है मेरा तो यह कार्य नहीं । मैं . इसका कर्ता नहीं मैं तो शुद्ध चैतन्यमात्र आत्मा हूं। उसकी प्रवृत्ति दर्शन ज्ञानरूप है उसकर इस उदय हुए कर्मके देखने जाननेवाला हूं। अपने स्वरूपमें ही मैं वर्तता हूं। ऐसा अनुभव करना ही निश्चयचारित्र है। इसतरह आलोचना कल्प समाप्त किया। आगे प्रत्याख्यान कल्प कहते हैं उसका टीकामें संस्कृत पाठ है-म करिष्यामि इ. त्यादि । अर्थ-प्रत्याख्यान करनेवाला कहता है कि आगामी कालमें कर्मको मैं नहीं करूंगा, अन्यको प्रेरकर नहीं कराऊंगा, अन्य करते हुएको भला नहीं जानूंगा मनकर वचनकर कायकर । ऐसा प्रथम भंग है । इसमें कृत कारित अनुमोदना इन तीनोंपर मन वचन काय ये तीनों लगाये इसलिये तिया तिया मिल तेतीसकी समस्याका एक भंग हुआ। १ । ३३ । इसीतरह अन्य भंगोंका भी टीकामें संस्कृत पाठ है उनकी वचनिका लिखते हैं । आगामी कालके कर्मको मै नहीं करूंगा, अन्यको प्रेरकर नहीं कराऊंगा, अन्य करते हुएको भला भी नहीं जानूंगा मनकर वचनकर । ऐसा दूसरा भंग है। इसमें कृत कारित अनुमोदना इन तीनोंपर मन वचन ये दो लगाये इसलिये बत्तीसकी समस्या हुई । २ । ३२ । आगामी कालके कर्मको मैं नहीं करूंगा, अन्यको प्रेरकर नहीं कराऊंगा, अन्य करते हुएको भला भी नहीं जानूंगा मनकर कायकर । ऐसा तीसरा भंग है । इसमें कृतकारित अनुमोदनाका तो तिया ही हुआ और मन काय ये दो लगे इसलिये बत्तीसकी समस्या हुई । ३ । ३२ । आगामी कालके कर्मको मैं नहीं करूंगा, अन्यको प्रेरकर नहीं कराऊंगा, अन्य करते हुएको नहीं अनुमोदूंगा वचनकर कायकर। ऐसा चौथा भंग है। इसमें कृतकारित अनुमोदना तीनोंपर वचन काय ये दो लगाये इसलिये बत्तीसकी समस्या हुई। ४ । ३२ । ऐसे बत्तीसके तीन भंग हुए ॥ आगामी कालके कर्मको मैं नहीं करूंगा, अन्यको प्रेरकर नहीं कराऊंगा, अन्य करतेको भला नहीं जानूंगा मनकर । ऐसा पांचवां भंग है । इसमें कृतकारित अमुमोदना इन ती ६४ समय.
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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