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________________ ४९२ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [ सर्वविशुद्धज्ञानकायेन तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति १० यदहमकार्ष यदचीकरं मनसा च वाचा च तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ११ यदहमकार्ष यत्कुर्वतमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं मनसा च वाचा च तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति १२ यदहमचीकरं यत्कुर्वतमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं मनसा च वाचा च तन्मे मिथ्या दुष्कृतमिति १३ यदहमकार्ष यदचीकरं मनसा कायेन च तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति १४ यदहमकार्ष यत्कुर्वतमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं मनसा च कायेन च तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिमिति १५ यदहमचीकरं यत्कुर्वतमप्यन्यं समन्व भावनां कर्मबंधविनाशार्थं करोतीत्यर्थः । तद्यथा-यदमहमकार्ष यदहमचीकरं यदहं कुर्वतमप्यन्यं प्राणिनं समन्वज्ञासिषं । केन ? मनसा वाचा कायेन तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति षड्संयोगेनैकभंगः । यदहमकार्ष यदहमचीकरं यदहं कुर्वतमप्यन्यं प्राणिनं समनुज्ञासिषं । केन ? मनसा वाचा तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति पंचसंयोगेन, एकैकापनयनेन भंगत्रयं भवति । संयोगेनेत्याद्यक्षसंचारेणैकोनपंचाशद्धंगा भवंतीति टीकाभिप्रायः । अथवा त एव सुखोपायेन कथ्यते । कथं ? जो पापकर्म मैंने अन्यको प्रेरकर कराया अन्य करते हुएको भला जाना मन वचन कायकर वह पापकर्म मेरा मिथ्या हो । ऐसा यह दशवां भंग है । यहां कारित अनुमोदना दो ही लिये और मनवचनकाय तीनों ही लगे इसलिये तेईसकी समस्याका भंग हुआ। १०।२३। ऐसे तेईसके भी तीन ही भंग हुए । जो पापकर्म मैंने अतीतकालमें किया और अन्यको प्रेरकर कराया मनवचनकर वह पापकर्म मेरा मिथ्या हो । ऐसा ग्यारहवां भंग हुआ। इसमें कृतकारित दो लिये और मनवचन दो लगे इसलिये दो दो ऐसी बाईसकी समस्यासे बाईसका भंग नाम कहा है। ११ । २२। जो पापकर्म मैंने अतीतकालमें किया और अन्यको करते हुएको भला जाना मनकर वचनकर वह पापकर्म मेरा मिथ्या हो ऐसा बारनां भंग है । इसमें कृत अनुमोदना दो लिये मनवचन दो लगे इसलिये बाईसकी समस्यासे बाईसका भंग कहना । १२ । २२ । जो पापकर्म मैंने अतीतकालमें किया और अन्यको प्रेर कराया तथा अन्य करते हुएको भला जाना मनकर वचनकर वह पापकर्म मेरा मिथ्या हो । ऐसा तेरवां भंग है। इसमें कृतकारित दो लिये, मन वचन दो लगाये इसलिये बाईसकी समस्यासे बाईसका भंग नाम पाया ।१३।२२। जो मैंने अतीतकालमें पापकर्म किया और अन्यको प्रेरकर कराया मनकर कायकर वह मेरा पापकर्म मिथ्या हो । यह चौदवां भंग हुआ। इसमें कृतकारित दो लिये, मनकाय दो लगे इसलिये बाईसकी समस्यासे बाईसका भंग कहना । १४ । २२ । जो पापकर्म मैंने अतीतकालमें किया और करते हुए अन्यको भला जाना मनकायकर । ऐसा पंद्रहवां भंग है । इसमें कृत अनुमोदना लिये और मन काय लगे इसलिये बाईसका भंग कहना । १५ । २२ । जो पापकर्म मैंने अन्यको प्रेरकर कराया
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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