________________
अधिकारः ९]
समयसारः ।
न च जीवस्य परद्रव्यं रागादीन्युत्पादयतीति शक्यं - अन्यद्रव्येणान्यद्रव्यगुणोत्पादकरणस्यायोगात् । सर्वद्रव्याणां स्वभावेनैवोत्पादात् । तथाहि - मृत्तिका कुंभभावेनोत्पद्यमाना किं कुंभकारस्वभावेनोत्पद्यते किं मृत्तिकास्वभावेन ? यदि कुंभकारस्वभावे - नोत्पद्यते तदा कुंभकरणाहंकारनिर्भरपुरुषाधिष्ठितव्यापृत कर पुरुषशरीराकारः कुंभः स्यात्, नच तथास्ति द्रव्यांतरस्वभावेन द्रव्यपरिणामोत्पादस्यादर्शनात् । यद्येवं तर्हि मृत्तिका कुंभकारस्वभावेन नोत्पद्यते किंतु मृत्तिकास्वभावेनैव, स्वस्वभावेन द्रव्यपरिणामोत्पादस्य
४७५
नरूपेण, अचेतनस्य चेतनरूपेण वा चेतनाचेतनगुणघातो विनाशो न क्रियते यस्मात् । तह्मा दु सव्वदव्वा उपजंते सहावेण तस्मात्कारणान्मृत्तिकादिसर्वद्रव्याणि कर्तृणि घटादिरूपेण जायमानानि स्वकीयोपादानकारणेन मृत्तिकादिरूपेण जायंते नच कुंभकारादिबहिरंग निमित्तरूपेण ।
1
श्रयरूप तथा जिसमें हस्त व्यापाररूप है ऐसे पुरुषके शरीर के आकार घड़ा होना चा हिये अर्थात् कुंम्हारके शरीरके आकार घड़ा वनना चाहिये । सो ऐसा होता नहीं । क्योंकि अन्य द्रव्यके स्वभावकर अन्यद्रव्य के परिणामका उपजना नहीं देखते । यदि ऐसा है तो मृत्तिका कुंभकारके स्वभावकर तो नहीं उपजती । तो किसतरह उपजती है ? मृत्तिका स्वभावकर ही उपजती है क्योंकि अपने स्वभावकर ही द्रव्यके परिणामका उत्पाद देखा जाता है । ऐसा होनेपर मृत्तिकाको स्वभावके नहीं उल्लंघन करनेसे कुंभकार घड़े को उत्पन्न करनेवाला नहीं है । मट्टी ही कुंभकार के स्वभावको नहीं स्पर्शती अपने ही स्वभावकर कुंभभावसे उत्पन्न होती है । इसीतरह सब द्रव्य अपने परिणामरूप पर्यायकर उपजते हैं । वे क्या निमित्तभूत अन्य द्रव्यके स्वभावकर उपजते हैं या अपने स्वभाव ही कर उपजते हैं ? ऐसी दो पक्ष पूछीं । उनमेंसे यदि कहो कि निमित्तभूत अन्यद्रव्यके स्वभावकर उपजते हैं तो निमित्तभूत परद्रव्यके आकार उसका परिणाम होना चाहिये । ऐसा होता नहीं, क्योंकि अन्यद्रव्य के स्वभावकर अन्यद्रव्यके परिणामके उपजनेका अदर्शन है नहीं देखा जाता । जो ऐसा है तो सभी द्रव्य निमित्तभूत परद्रव्यके स्वभावकर नहीं उपजते । तो किसतरह उपजते हैं ? अपने स्वभावकर ही उपजते हैं। क्योंकि अपने स्वभावकर ही सब द्रव्योंके परिणामका उत्पाद देखा जाता है । ऐसा होने पर सभी द्रव्योंके निमित्तभूत जो अन्यद्रव्य वे अन्यद्रव्यके परिणामके उपजानेवाले नहीं है । सभी द्रव्य निमित्तभूत अन्यद्रव्योंके स्वभावको नहीं स्पर्शते अपने स्वभावकर अपने परिणामभावकर उपजते हैं । इसकारण आचार्य कहते हैं कि जो परद्रव्य है वह जीवके रागादिकके उपजानेवाला नहीं दीखता जिसपर हम कोप करें ॥ भावार्थ - आत्माके रागादिक उपजते हैं वे अपने ही अशुद्ध परिणाम हैं । निश्चयनयकर विचारो तो इनके उपजानेवाला अन्यं द्रव्य नहीं है । अन्यद्रव्य इनका निमित्त