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________________ ४७२ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । [सर्वविशुद्धज्ञानदर्शनज्ञानचरित्रं किंचिदपि नास्ति त्वचेतने कर्मणि । तस्मात्किं हंति चेतयिता तेषु कर्मसु ॥ ३६७ ॥ दर्शनज्ञानचरित्रं किंचिदपि नास्ति त्वचेतने कायेषु । तस्मात् किं हंति चेतयिता तेषु कायेषु ॥ ३६८॥ ज्ञानस्य दर्शनस्य भणितो घातस्तथा चरित्रस्य । नापि तत्र पुद्गलद्रव्यस्य कोऽपि घातस्तुनिर्दिष्टः ॥ ३६९ ॥ जीवस्य ये गुणाः केचिन्न संति खलु ते परेषु द्रव्येषु । तस्मात्सम्यग्दृष्टेर्नास्ति रागस्तु विषयेषु ॥ ३७० ॥ रागो द्वेषो मोहो जीवस्यैव चानन्यपरिणामाः । एतेन कारणेन तु शब्दादिषु न संति रागादयः ॥ ३७१ ॥ चेतने शब्दादिविषयकर्मकायरूपे पुद्गलद्रव्ये कोऽपि घातो निर्दिष्टः । किं च यथा घटाधारभूते हते सति घटो हतो न भवति तथा रागादिनिमित्तभूते शब्दादिपंचेंद्रियहतेऽपि सति मनसि गता रागादयो हता न भवंति नचान्यस्य घाते कृते सत्यन्यस्य घातो भवति । कस्मात् ? अतिप्रसंगादिति भावः । जीवस्स जे गुणा केई णत्थि ते खलु परेसु व्वेसु यस्माज्जीवस्य ये केचन सम्यक्त्वोदयो गुणास्ते परेषु परद्रव्येषु शब्दादिविषयेषु न संति खलु स्फुटं तह्मा सम्मादिहिस्स णत्थि रागो दु विसयेसु तस्मात्कारणानिर्विषयस्वशुद्धात्मभावनोत्थसुखतप्तस्य सम्यग्दृष्टेर्विषयेषु रागो नास्तीति रागो दोसो मोहो जीवस्स दुजे अणण्णघाता जाता । इस न्यायसे कहते हैं कि आत्माके धर्म दर्शन ज्ञान चारित्र हैं वे पुद्गलद्रव्यके घात होनेपर भी नहीं पाते जाते तथा दर्शन ज्ञान चारित्रका घात होनेपर भी पुद्गल द्रव्य भी नहीं पाता जाता । इसतरह दर्शन ज्ञान चारित्र हैं वे पुद्गलद्रव्यमें नहीं हैं । जो ऐसे न हो तो दर्शन ज्ञान चारित्रका घात होनेसे पुद्गलद्रव्यका घात अवश्य हो जावे और पुद्गलद्रव्यका घात होनेसे दर्शन ज्ञान चारित्रका घात अवश्य हो जावेगा । जिस लिये ऐसा है इसी लिये आचार्य कहते हैं कि जो कुछ जीवद्रव्यके गुण हैं वे सभी परद्रव्योंमें नहीं हैं। ऐसे पुद्गलको अच्छीतरह हम देखते हैं । यदि ऐसा न हो तो यहांपर भी जीवके गुणका घात होनेसे पुद्गलद्रव्यका घात अवश्य होना चाहिये और पुद्गलद्रव्यका घात होनेसे जीवगुणका घात अवश्य होना चाहिये । सो ऐसा होता नहीं । अब विचारते हैं कि ऐसा होनेपर सम्यग्दृष्टि के विषयों में राग किस हेतुसे होता है ? वहां कहते हैं कि किसी हेतुसे भी नहीं होता । तब पूछते हैं कि रागके उपजनेकी कोनसी खानि है ? वहां कहते हैं कि रागद्वेष मोह हैं वे जीवके ही अज्ञानमय परिणाम हैं । यह अज्ञान ही रागादिकके उपजनेकी खानि है। क्योंकि विषय हैं वे परद्रव्य हैं उनमें रागादिक अज्ञानमय परिणाम नहीं है । जब अज्ञानका अभाव
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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