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________________ ३७० रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । [बंधयनयस्तु शुद्धस्यात्मनो ज्ञानाधाश्रयत्वस्सैकांतिकत्वात् तत्प्रतिषेधकः । तथाहि-नाचारादिशब्दश्रुतं, एकांतेन ज्ञानस्याश्रयः, तत्सद्भावेप्यभव्यानां शुद्धात्माभावेन ज्ञानस्याभावात् । न जीवादयः पदार्था दर्शनस्याश्रयाः तत्सद्भावेप्यभव्यानां शुद्धात्माभावेन दर्शनस्याभावात् । न षट्जीवनिकायः चारित्रस्याश्रयस्तत्सद्भावेप्यमव्यानां शुद्धात्माभावेन चारित्रस्याभावात् । शुद्ध आत्मैव ज्ञानस्याश्रयः, आचारादिशब्दश्रुतसद्भावेऽसद्भावे वा तत्सद्भावेनैव ज्ञानस्य सद्भावात् । शुद्ध आत्मैव दर्शनस्याश्रयः, जीवादिपदार्थसद्भावेऽसद्भावे वा तत्सद्भावेनैव दर्शनस्य सद्भावात् । शुद्ध आत्मैव चारित्रस्याश्रयः, षड्जीवनि चेत् , यदि मिथ्यात्वादिसप्तप्रकृत्युपशमक्षयोपशमक्षयात्सकाशाच्छुद्धास्मानमुपादेयं कृत्वा वर्तते तदा मोक्षो भवति । यदि पुनः सप्तप्रकृत्युपशमाद्यभावे शुद्धात्मानमुपादेयं कृत्वा न वर्तते तदा मोक्षो न भवति । तदपि कस्मात् ? सप्तप्रकृत्युपशमाद्यभावे सति अनंतज्ञानादिगुणस्वरूपमात्मानमुपादेयं कृत्वा न वर्तते न श्रद्धत्ते यतः कारणात् । यस्तु तादृशमात्मानमुपादेयं श्रद्धत्ते तस्य सप्तप्रकृत्युपशमादिकं विद्यते स तु भव्यो भवति । यस्य पुनः पूर्वोक्तशुद्धात्मस्वरूपमुपादेयं नास्ति तस्य सप्तप्रकृत्युपशमादिकं न विद्यते इति ज्ञातव्यं । मिथ्याद्दष्टिरसौ तेन कारणेनाभव्यजीवस्य मिथ्यात्वादिसप्तप्रकृत्युपशमादिकं कदाचिदपि न संभवति इति भावार्थः । किं च, नि. विकल्पसमाधिरूपनिश्चये स्थित्वा व्यवहारस्त्याज्यः, किं तु तस्यां त्रिगुप्तावस्थायां व्यवहारः स्वचारित्र हैं इसलिये व्यवहारनयका निषेध करनेवाला है । यही हेतुसे कहते हैं-आचारादि शब्दश्रुत है वह एकांतसे ज्ञानका आश्रय नहीं है क्योंकि आचारांगादिकका अभव्य जीवके सद्भाव होने पर भी शुद्ध आत्माका अभाव होनेसे ज्ञानका अभाव है। जीव आदि नौ पदार्थ हैं वे दर्शनका आश्रय नहीं हैं क्योंकि अभव्यके उनका सद्भाव होनेपर भी शुद्धास्माका अभाव होनेसे दर्शनका भी अभाव है । छहकायके जीवोंकी रक्षा चारित्रका आश्रय नहीं है क्योंकि उसके मौजूद होनेपर भी अभव्यके शुद्धात्माका अभाव होनेसे चारित्रका अभाव है। शुद्ध आत्मा ही ज्ञानका आश्रय है क्योंकि आचारांगादि शब्दश्रुतका सद्भाव होने पर या असद्भाव होनेपर शुद्ध आत्माके सद्भावसे ही ज्ञानका सद्भाव है। शुद्ध आत्मा ही दर्शनका आश्रय है क्योंकि जीवादिपदार्थोंका सद्भाव होने वा न होनेपर भी शुद्ध आत्माके सद्भावसे ही दर्शनका सद्भाव है । शुद्ध आत्मा ही चरित्रका आश्रय है क्योंकि छहकायके जीवोंकी रक्षाका सद्भाव होने तथा असद्भाव होनेपर भी शुद्धात्माके सद्भावसे ही चारित्रका सद्भाव है ॥ भावार्थ-आचारांगादि शब्दश्रुतका जानना, जीवादि पदार्थोंका श्रद्धान करना तथा छहकायके जीवोंकी रक्षा इन सबके होनेपर भी अभव्यके ज्ञान दर्शन चारित्र नहीं होते इसलिये व्यवहारनय निषेधा गया है । तथा शुद्धात्माके होनेपर ज्ञान दर्शन चारित्र होते ही हैं इस कारण निश्चयनय
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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