SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अधिकारः ७] समयसारः । ३५७ वेऽपि बध्यते मुच्यते च, यतः परत्राकिंचित्करत्वान्नेदमध्यवसानं स्वार्थक्रियाकारि ततश्च मिथ्यैवेति भावः । “अनेनाध्यवसानेन निष्फलेन विमोहितः । तत्किंचनापि नैवास्ति नात्मात्मानं करोति यत् ॥ १७१॥"२६७॥ सति भवंतीति कथयति कायेण दुक्खवेमिय सत्ते एवं तु जं मदिं कुणसि । सव्वावि एस मिच्छा दुहिदा कम्मेण जदि सत्ता ॥ वाचाए दुक्खवेमिय सत्ते एवं तु जं मदिं कुणसि । सव्वावि एस मिच्छा दुहिदा कम्मेण जदि सत्ता ॥ मणसाए दुक्खवेमिय सत्ते एवं तु जं मदिं कुणसि । सव्वावि एस मिच्छा दुहिदा कम्मेण जदि सत्ता ॥ सच्छेण दुक्खवेमिय सत्ते एवं तु जं मदिं कुणसि । सव्वावि एस मिच्छा दुहिदा कम्मेण जदि सत्ता ॥ कायेण च वाया वा मणेण सुहिदे करेमि सत्तेति । एवंपि वदि मिच्छा सुहिदा कम्मेण जदि सत्ता ॥ कायेन दुःखयामि सत्त्वान् एवं तु यन्मतिं करोषि । सर्वापि एषा मिथ्या दुःखिताः कर्मणा यदि सत्त्वाः ॥ वाचा दुःखयामि सत्त्वान् एवं तु यन्मतिं करोषि । सर्वापि एषा मिथ्या दु:खिताः कर्मणा यदि सत्त्वाः ॥ मनसा दुःखयामि सत्त्वान् एवं तु यन्मतिं करोषि । सर्वापि एषा मिथ्या दुःखिताः कर्मणा यदि सत्त्वाः ॥ शस्त्रेण दुःखयामि सत्त्वान् एवं तु यन्मतिं कबंधते हैं [च] और [ मोक्षमार्गे] मोक्षमार्गमें [स्थिताः] तिष्ठेहुए [मुच्यते] कर्मकर छूटते हैं ऐसा जब है [तत् ] तो [त्वं किं करोषि ] तू क्या करेगा ? तेरा तो बांधने छोड़नेका अभिप्राय विफल हुआ ॥ टीका-हे भाई तेरी यह बुद्धि है कि मैं प्रगटपने बंधाता हूं छुड़ाता हूं ऐसा अध्यवसान है उसकी अर्थक्रिया जीवोंका बांधना छोड़ना है । सो जीव तो इस अध्यवसायके मौजूद होनेपर भी अपने सरागवीतरागपरिणामके अभावसे न बंधते हैं न छूटते हैं। और अपने सरागवीतरागपरिणामके सद्भावसे तेरे अध्यवसायका अभाव होनेपर भी बंधते हैं तथा छूटते हैं, इसलिये परमें तो यह अकिंचित्कर है कुछ भी करनेवाला नहीं है । इसकारण यह अध्यवसान खार्थक्रियाकारी नहीं है इसलिये मिथ्या ही है ऐसा भाव है ॥ भावार्थ-जो हेतु कुछ भी न करे उसे अकिचित्कर कहते हैं सो यह बांधने छोड़नेका अध्यवसान है उसने परमें कुछ भी नहीं किया । क्योंकि इसके न होनेपर जीव अपने सराग वीतराग परिणामकर १ इत आरभ्य गाथापंचकं नोपलब्धमात्मख्यातौ ततो नास्त्यस्य गाथापंचकस्यात्मख्यातिः ॥
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy