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________________ ३५० रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । दुःखितसुखितान् सत्वान् करोमि यदेवमध्यवसितं ते । तत्पापबंधकं वा पुण्यस्य च बंधकं वा भवति ॥ २६० ॥ मारयामि जीवयामि च सत्वान् यदेवमध्यवसितं ते । तत्पापबंधकं वा पुण्यस्य बंधकं वा भवति ।। २६१ ॥ य एवायं मिथ्यादृष्टेरज्ञानजन्मा रागमयोध्यवसायः स एव बंधहेतुः इत्यवधारणीयं न च पुण्यपापत्वेन द्वित्वाद्वंधस्य तद्वित्वां तरमन्वेष्टव्यं । एकेनैवानेनाध्यवसायेन दुःखयामि, मारयामि इति, सुखयामि, जीवयामीति च द्विधा शुभाशुभाहंकाररसनिर्भरतया द्वयोरपि पुण्यपापयोर्बंधहेतुत्वस्याविरोधात् ॥ २६०।२६१ एवं हि हिंसाध्यावसाय एव हिंसेत्यायातं ; अज्झसिदेण बंधो सत्ते मारेउ मा व मारेउ । एसो बंधसमासो जीवाणं णिच्छयणयस्स ॥ २६२ ॥ [ बंध यामि सत्त्वान् यदेवमध्यवसितं ते तव शुद्धात्मश्रद्धानज्ञानानुष्ठानशून्यस्य सतः पापस्य पुण्यस्य वा तदेव बंधकं भवति न चान्यत् किमपि कर्तुमायाति । कस्मात् ? इति चेत्, तस्य परजीवस्य जीवितमरणादेः स्वोपार्जितकर्मोदयाधीनत्वात् इति ॥ २६०।२६१ ॥ अथैवं निश्चयनयेन हिंसाध्यवसाय एव हिंसेत्यायातं विचार्यमाणं; - अज्झवसिदेण बंधो सत्ते मारेहि मा व मारेहि अध्यवसितेन परिणामेन बंधो भवति, सत्वान् मारय मा वा मारय एसो नियम जानना । बंध पुण्यपापके भेदसे दो भेद सहित है सो इसके दोपन होनेसे कार - का भेद नहीं विचारना कि पुण्यबंधका कारण तो अन्य है और पापबंधका कारण कोई दूसरा ही है, एक ही इस अध्यवसायसे “मैं दुःखी करता हूं मारता हूं तथा सुखी करता हूं जिवाता हूं” ऐसे दो भेदोंको अशुभ अहंकाररसकर पूर्ण होनेसे पुण्य पाप दोनोंही बंधका कारणपना है अर्थात् एक ही अध्यवसायसे पुण्यपाप दोनोंका बंध होता है ॥ भावार्थ – यह अज्ञानमय अध्यवसाय ही बंधका कारण है; उसमें शुभ अध्यवसाय तो जिवाना सुखी करना ऐसा है तथा मारना दुःखी करना यह अशुभ अध्यवसाय है । सो अहंकाररूप मिथ्याभाव दोनोंमें ही है इसलिये ऐसा न जानना कि शुभका कारण तो अन्य है और अशुभका कारण दूसरा ही है । अज्ञानपनेकर दोनों अध्यवसाय एक ही हैं ॥ २६०।२६१ ॥ आगे कहते हैं कि ऐसा होनेपर अर्थात् अध्यवसायको ही जो यह हिंसाका अध्यवसाय है वही हिंसा है यह सिद्ध यस्य ] निश्चय नयका यह पक्ष है कि [ सत्त्वान् ] जीवोंको बंधका कारण होनेसे हुआ; - [ निश्चयन[ मारयतु ] मारो
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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