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________________ ३४५ अधिकारः ७] समयसारः। कथमध्यवसायोज्ञानमिति चेत् : कम्मोदएण जीवा दुक्खिसुहिदा हवंति जदि सव्वे । कम्मं च ण देसि तुमं दुक्खिदसुहिदा कहं कया ते ॥ २५४ ॥ कम्मोदएण जीवा दुक्खिदमुहिदा हवंदि जदि सव्वे । कम्मं च ण दिति तुहं कदोसि कहं दुक्खिदो तेहि ॥ २५५ ॥ कम्मोदएण जीवा दुक्खिदमुहिदा हवंति जदि सव्वे । कम्मं च ण दिति तुहं कह तं सुहिदो कदो तेहिं ॥ २५६ ॥ अथ परस्य सुखदुःखं करोमीत्यध्यवसायकः कथमज्ञानी जातः? इति चेत्;-कम्मणिमित्तं सव्वे दुक्खिदमुहिदा हवंति जदि सत्ता यदि चेत् कर्मोदयनिमित्तं सर्वे सत्त्वा जीवाः सुखितदुःखिता भवंति ? कम्मं च ण देसि तुमं दुक्खिदमुहिदा कहं कदा ते तर्हि शुभाशुभकर्म च न ददासि त्वं कथं ते जीवास्त्वया सुखितदुःखिताः कृताः ? न कथमपि । कम्मणिमित्तं सब्वे दुःखिदमुहिदा हवंति जदि सत्ता यदि चेत्कर्मोदयनिमित्तं सर्वे जीवाः सुखितदुःखिता भवंति कम्मं च ण देसि तुम कह तं सुहिदो कदो तेहिं तर्हि शुभाशुभकर्म च न ददासि त्वं न प्रयच्छसि तेभ्यः कथं त्वं सुखीकृतस्तैः ? न . कथमपि । कम्मोदयेण जीवा दुःखिदमुहिदा हवंति जदि सव्वे यदि चेत् कर्मोदयेन सर्वे जीवा दुःखितसुखिता भवंति कम्मं च ण देसि तुमं कह तं दुहिदो सका ऐसा मानना है कि मैं परजीवको सुखी दुःखी करता हूं और मुझे परजीव सुखी दुःखी करते हैं यह मानना अज्ञान है जिसके यह है वह अज्ञानी है तथा जिसके यह नहीं है वह ज्ञानी है सम्यग्दृष्टि है ॥ २५३ ॥ आगे पूछते हैं कि यह अध्यवसाय अज्ञान कैसे है ? उसका उत्तर कहते हैं;-[सर्वे जीवाः] सब जीव [कर्मोदयेन] अपने कर्मके उदयसे [दुःखितमुखिताः] दुःखी सुखी [भवंति] होते हैं [ यदि ] जो ऐसा है तो हे भाई [ त्वं ] तू उन जीवोंको [कर्म च ] कर्म तो [न ददासि ] नहीं देता परंतु तूने [ते] वे [दुःखितसुखिताः ] दुःस्त्री सुखी [ कथं कृताः] कैसे किये ? [ सर्वे जीवा ] सब जीव [ कर्मोदयेन ] अपने कर्मके उदयसे [ दु:खितसुखिताः ] दुःखी सुखी [भवंति ] होते हैं [ यदि ] जो ऐसे हैं तो हे भाई वे जीव [ तव ] तुझको [कर्म च] कर्म तो [ न ददति ] नहीं देते [तैः ] उन्होंने [दुःखितः कथं ] दुःखी तू कैसे [कृतोसि ] किया [च ] तथा [ सर्वे जीवा ] सभी जीव [कर्मोदयेन] अपने कर्मके उदयसे [ दुःखितमुखिताः ] दुःखी सुखी [ यदि ] जो [भवंति] होते हैं सो हे भाई ऐसा है तो वे जीव [कर्म च ] कर्मोको [तव] तुझे [ न ददति] १ तात्पर्यवृत्ती “कम्मणिमित्तं सव्वे दुक्खिदसुहिदा हवंति जदि सत्ता" इति पाठः । ४४ समय०
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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