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________________ अधिकारः ६] समयसारः । २७७ यथा कश्चिद्विषवैद्यः परेषां मरणकारणं विषमुपभुंजानोऽपि अमोघविद्यासामर्थ्येन निरुद्धतच्छक्तित्वान्न म्रियते, तथा अज्ञानिनां रागादिभावसद्भावेन बंधकारणं पुद्गलकर्मोंदयमुपभुजानोऽपि अमोघज्ञानसामर्थ्यात् रागादिभावानामभावे सति निरुद्धतच्छक्तित्वात् न बध्यते ज्ञानी ॥ १९५॥ अथ वैराग्यसामर्थ्य दर्शयति; जह मजं पिवमाणो अरदिभावेण मजदि ण पुरिसो। व्वुवभोगे अरदो णाणी वि ण वज्झदि तहेव ॥ १९६॥ यथा मद्यं पिबन् अरतिभावेन माद्यति न पुरुषः । द्रव्योपभोगे अरतो ज्ञान्यपि न बध्यते तथैव ॥ १९६ ॥ यथा कश्चित्सुरुषो मैरेयं प्रति प्रवृत्ततीव्रारतिभावः सन् मैरेयं पिबन्नपि तीव्रारतिसामजह विसमुवभुजंता विजापुरिसा ण मरणभुवयंति यथा विषमुपभुजानाः संतो गारुडविद्यापुरुषाः, अमोघमंत्रसामर्थ्यात् नैव मरणमुपयांति । पुग्गलकम्मस्सुदयं तह भुंजदि व वज्झदे णाणी तथा परमतत्त्वज्ञानी शुभाशुभकर्मफलं भुंक्ते तथापि निर्विकल्पसमाधिलक्षणभेदज्ञानामोघमंत्रबलान्नैव बध्यते कर्मणेति ज्ञानशक्तिव्याख्यानं गतं ॥ १९५॥ अथ संसारशरीरभोगविषये वैराग्यं दर्शयति;-जह मजं पिवमाणो अरद्भिावेण __ आगे ज्ञानकी सामर्थ्यको दिखलाते हैं;-[यथा ] जैसे [वैद्यः] वैद्य [ विषं उप जानः] विषको भोगता हुआ भी [मरणं ] मरणको [न उपयाति ] नहीं प्राप्त होता [तथा ] उसीतरह [ज्ञानी ] ज्ञानी [ पुद्गलकर्मणः ] पुद्गलकर्मके [उदयं ] उदयको [ भुंक्ते ] भोगता है तो भी [ नैव बध्यते ] बंधता नहीं है । टीका-जैसे कोई विषवैद्य, दूसरेके मरणका कारण विषको भोगता हुआ भी सफल मंत्र तंत्र औषध आदिक विद्याकी सामर्थ्यसे विषकी मारणशक्तिको रोककर उससे मरणको प्राप्त नहीं होता, उसीतरह अज्ञानीको रागादि भावोंके सद्भावसे बंधका कारण ऐसे पुद्गलकर्मके उदयको भोगता हुआ भी ज्ञानी सफल सत्यार्थ ज्ञानकी सामर्थ्यसे रागादि भावोंके अभावकर कर्मके उदयकी आगामी बंध करनेवाली शक्तिको रोक देता है इसलिये आगामी काँकर नहीं बंधता ॥ भावार्थ-जैसे वैद्य अपनी विद्याकी सामर्थ्यसे विषकी मारनेरूप शक्तिका अभाव करता है उस विषको खानेपर भी उससे नहीं मरता, उसीतरह ज्ञानीके ज्ञानकी सामर्थ्य एसी है कि कर्मके उदयकी बंध करनेरूप शक्तिको रोक देती है । इसलिये उसके कर्मका उदय भोगनेमें आता है तो भी आगामी बंध नहीं करता । यह सम्यग्ज्ञानकी सामर्थ्य है ॥ १९५ ॥ आगे वैराग्यकी सामर्थ्य दिखलाते हैं;-[ यथा ] जैसे [पुरुषः] कोई पुरुष
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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