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________________ उत्पन्न तो होता है पर श्रत की सहायता लेता है वह इन्द्रिय जन्य श्रुत ज्ञान है । इसी रीति से मन के द्वारा जो ज्ञान उत्पन्न होता है वह यदि श्रुत का अनुसरण न करे तो अनिन्द्रिय मति ज्ञान है । मन से उत्पन्न जो ज्ञान श्रुत की सहायता लेता है वह अनिन्द्रियज श्रृत ज्ञान है । मूलम्-श्रुतानुसारित्वं च-सङ्केतविषयपरोपदेशं श्रुतग्रन्थं वाऽनुसृत्य वाच्यवाचकभावेन संयोज्य 'घटो घटः' इत्याद्यन्तजन्या (जल्पा) कारग्राहित्वम् । अर्थ-आप्त पुरुष संकेत के विषय में जो उपदेश करता है उसका अथवा श्रुत ग्रन्थ का अनुसरण करके और वाच्यवाचक भाव से संयुक्त करके अंदर में "घट घट" इत्यादि शब्दाकार का ग्रहण श्रुत का अनुसरण है । विवेचना-'इस पद से अमुक अर्थ का बोध करना चाहिये इस रीति की जो इच्छा है उसका नाम संकेत है । संकेत के काल में वृक्ष आदि अर्थ के साथ वृक्ष आदि शब्दके वाच्यवाचक भाव संबंध का ज्ञान होता है। वृक्ष शब्द वाचक है और वृक्ष अर्थ वाच्य है, यह वाच्यवाचकभाव संबंध का रूप है । आप्त पुरुष के शब्द को सुनकर श्रोता के मन में जो शब्द सहित ज्ञान होता है वह ज्ञान श्रुत का अनुसारी है। श्रुत ग्रन्थ का आश्रय लेकर जो ज्ञान शब्द के साथ होता है वह भी श्रुत का अनुसरण करता है अर्थात् ज्ञान के साथ
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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