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________________ साधारण रूप में कारण होने पर भी सहकारी कारण, मुख्य कारण रूप में नहीं गिना जाता । गेहूं यव आदि से जब अंकुर को उत्पत्ति होती है तब केवल गेहूं और यव आदि का बीज उत्पत्ति में कारण नहीं है जल, आतप, क्षेत्र आदि भी कारण हैं, परन्तु अंकुर, यव का अकुर, गेहूं का अंकुर इस रीति से कहलाता है, जल का अंकुर क्षत्र का अंकुर इस रीति से नहीं कहलाता। गेहूं यव आदि के बीज प्रधान हैं इस कारण गेहूं का अंकुर यव का अंकुर इत्यादि व्यवहार होता है। रूप आदि के प्रत्यक्ष को उत्पत्ति में चक्षु आदि इन्द्रिय प्रधान कारण हैं इसलिये वह इन्द्रिय जन्य कहलाता है अनिन्द्रिय जन्य नहीं । प्रथम व्युत्पत्ति के अनुसार प्रत्यक्ष शब्द इस कारण से बाह्य प्रत्यक्ष को इन्द्रिय जन्य रूप में कहता है। . दूपरी व्युत्पत्ति प्रमान रूपसे जीव द्वारा जन्य ज्ञान को प्रत्यक्ष कहती है। शंका करते हैं मूलम्--- चैवमवध्यादौ मत्यादौ च प्रत्यक्षव्यपदेशो न स्यादिति वाच्यम् , अर्थ-यदि ये दो व्युत्पत्तियाँ हों तो अवधि, मनःपर्याय और केवल इन तीन ज्ञानों में और मति आदि में प्रत्यक्ष शब्द का व्यवहार नहीं होना चाहिये । विवेचना-प्रथम व्युत्पत्ति के अनुसार जो इन्द्रियों से जन्य है वह प्रत्यक्ष कहलाता है। इस अर्थ में अवधि मनःपर्याय और केवल ज्ञान में प्रत्यक्ष व्यवहार नहीं होना चाहिए अवधि आदि ज्ञान जैन सिद्धांत में प्रत्यक्ष हैं, कारण उनकी उत्पत्ति में बाह्य इन्द्रिय कारण नहीं हैं।
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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