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मूलम्-तत्र यद्यपि यस्य जीवास्याजीवस्य वा जीव इति
नाम क्रियते स नामजीवः, देवतादिप्रतिमा च स्थापनाजीवः, औपशमिकादिभावशाली भावजीव इति जीव
विषयं निक्षेप त्रयं सम्भवति, न तु द्रव्यनिक्षेपः। अर्थः-जिस जीव अथवा अजीवका जोव यह नाम कर दिया
जाता है वह नाम जीव है । देवता आदिकी प्रतिमा स्थापना जीव है, औपशमिक आदि भावों से जो युक्म है वह भाव जीव है, इस प्रकार जीवके विषयमें तीन निक्षेप हो सकते है, पर द्रव्य निक्षेप नहीं हो सकता।
विवेचना:-चेतन अथवा अचेतन अर्थको जीव नाम दिया जाय तो वह नाम जोव है । मनुष्य आदि जीवों के भेद हैं, वे सब सामान्य रूपसे जीव हैं । वे सब जीव जीवनसे युक्त हैं। इनका जब जीव नाम है तब वह वाच्य अर्थसे युक्त होता है। जब अचेतन काष्ठ आदिका जीव नाम धर दिया जाता है तब वह जीवन रूर वाच्य अर्थसे रहित होता है इस दशामें यह नाम ही जीव है । जब किसी अचेतन वस्तुका जीव नाम रख दिया जाता है तब वह अचेतन, नाम जीव कही जाती है । जिस प्रकार स्वर्ग के अधिपति इन्द्र से भिन्न गोपाल का बालक नामसे इन्द्र कहा जाता है इस प्रकार जीवसे भिन्न अचेतन अर्थ नामसे जीव कहा जाता है।
देवता, मनुष्य आदिकी प्रतिमाका स्थापन जीव बुद्धिसे किया जाय तो वह प्रतिमा स्थापना जीव कहा जाता है। देवता