SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 571
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हुआ पूर्व काल में ज्ञानयुक्त आत्मा के साथ संबद्ध था,, इसलिए इस काल में ज्ञाता का शरीर द्रव्य घट कहा जाता है । जिस शरीर के द्वारा अभी घट को नहीं जानता है किन्तु अन्य काल में इसी शरीरसे जानेगा वह भावीशरीररूप द्रव्य घट है । द्रव्य निक्षेप के इन भेदों में अतीत और भावो शरीर को अथवा भावी कार्य के कारण को द्रव्य कहा गया है । अनुयोग द्वार में ऋजुसूत्र के अनुसार आवश्यक के विषय में उपयोग रहित पुरुष को द्रव्य आवश्यक कहा है। अनुयोगद्धार सूत्रके अनुसार ऋजुसूत्रनयके मतमें द्रव्य आवश्यक एक है, वह अनेक द्रव्य आवश्यकों को नहीं मानता । जो लोग ऋजुसूत्र के अनुसार द्रव्य निक्षेप को नहीं स्वीकार करते उनका अनुयोग द्वार के इस सूत्रके साथ विरोध है । कार्यरूप भाव को ऋजुसूत्र स्वीकार करता हैं इस विषय में स. का मत एक है। कार्य घट में भी जो वर्तमान पर्याय है वह उत्तर क्षण के पर्यायों के उत्पन्न करने में कारण है । कारण होनेसे भाव धट भी द्रव्य घट है । ऋजुसूत्र वर्तमान कालके साथ संबद्ध भाव का प्रतिपादन मुख्य रूप से करता है जो । भाव घट वर्तमान है उसमें उत्तर क्षण के घट को उत्पन्न करने की योग्यता है । यह योग्यता कारणता रूप है और इस लिए द्रव्य रूप है । भाव का कार्य स्वरूप ही वर्तमान काल में नहीं है, किन्तु योग्यतारूप कारणता भी वर्तमान काल में है। इसलिए ऋजुसूत्र नय के अनुसार द्रव्य का निक्षेप उचित है। ऋजुसूत्र और द्रव्यनिक्षेप के परस्पर संबंध का प्रतिपादन करनेवालों का यह अभिप्राय है।
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy