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________________ दिखाई देता । जब एक स्थान पर एक द्रव्य में समान आकार के पर्याय निरंतर उत्पन्न होते रहते हैं, भिन्न आकार के अर्थ के रूप में परिणाम नहीं होता, तब भ्रम हो जाता है । एक द्रव्य स्थिर रूप प्रतीत होने लगता है । पर्यायों के उत्पत्ति और नाश नहीं दिखाई देते। जब दीप प्रकाश करता है तब उसकी ज्वाला प्रति क्षण उत्पन्न होती और नष्ट होतो रहती है । तेज अनुगत रूप में स्थिर रहता है । देखने वाले को 'तेज' द्रव्य घण्टों तक एक स्थिर प्रतीत होता है। प्रत्येक क्षण में उत्पन्न होने वाली ज्वालाओं का भेद स्पष्ट रूप से नहीं दिखाई देता । यह ज्वाला पहले क्षण की है यह दूसरे क्षण की हैं इस रूप से ज्वालाओं का भेद नहीं दिखाई देता यहाँ पर अनुमान के द्वारा ज्वालाओं का भेद प्रतीत होता है। जब तक तेल रहता है तब तक दीप जलता रहता है निरंतर तेल के न्यून होते रहने से अनुमान होता है । प्रथम क्षण के तेल से प्रथम ज्वाला उत्पन्न हुई थी दूसरे क्षणों के तेल से अन्य ज्वालायें उत्पन्न होती हैं। इस दीप के दृष्टांत से सिद्ध है जब एक द्रव्यरूप अधिकरण में समान आकार के पर्याय उत्पन्न होते हैं तब पर्यायों का भेद नहीं प्रतीत होता किन्तु केवल अनुगामी द्रव्य प्रतीत होता है । दीप के समान समस्त अर्थ पुद्गल के परिणाम हैं । जब उनमें अन्य हेतुओं से भिन्न आकार को धारण करने वाले परिणाम नहीं उत्पन्न होते तब भी समान आकार के परिणाम उत्पन्न होते रहते हैं। इन स
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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