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________________ युद्गल का परिणाम है। इसलिए वह भो आकार से युक्त है । आकार से युक्त वर्ण जब क्रम से रहते हैं तब उनका आकार विशेष नाम से कहा जाता है। पहले ध्. पीछे अ. फिर- इ. उसके अनन्तर अ का उच्चारण जब क्रम के साथ होता है। तो 'घट' पद का एक आकार प्रकट होता है। पट आदि शब्दों में वर्णों का क्रम अन्य रीति से है इसलिए पट आदि शब्दों का आकार घट पद के आकार से भिन्न है। वाच्य अर्थों के समान वाचक शब्दों का भो आकार है । अर्थों का आकार बाह्य चक्षु आदि इन्द्रियों का विषय है और पदों का आकार श्रोत्र का विषय है इतना भेद है वस्तु और आकार में अत्यन्त भेद नहीं है इसलिए वृक्ष आदि के समान आकार भी वस्तुरूप है। मूलम्-द्रव्यात्मकं च सर्व उत्फणविफणकुंडलिताकारसमन्वि- . तसर्पवत् विकाररहितस्याविर्भावतिरोभावमात्रपरिणामस्य द्रव्यस्यैव सर्वत्र सर्वदानुभवात् । अर्थ:- सब पदार्थ द्रव्यात्मक है, ऊँची फणावाले और फणा से रहित और कुडली आकार से युक्त सर्प के समान विकार से रहित अविर्भाव और तिरोभावरूप केवल परिणाम से युक्त द्रव्य का ही समस्त देश और काल में अनुभव होता है। विवेचना- अर्थों में विकार प्रतिक्षण उत्पन्न होते रहते हैं कुछ विकारों का आकार बहुत भिन्न होता है । जहाँ आकार । बहुत अधिक भिन्न होता है वहाँ विकार स्पष्ट रूप से प्रतीत होता है । मिट्टी का पिंड जब घट बन जाता है तब पिंड का जो
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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