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________________ ३२ इसलिए यदि भाव घट वस्तु है तो मृत्पिड रूप द्रव्यघट भी अवश्य वस्तु है। जो परिणामी कारण नहीं हैं उनमें भो नाम और स्थापना हो सकती है इसलिए नाम और स्थापनाके वस्तुरूप होनेमें शंकाका अवसर है । दरिद्र बालक नामेन्द्र है, काष्ठ अथवा पत्थर को प्रतिमा स्थापना इन्द्र है, इन दोनों का स्वर्ग के अधिपति भाव इन्द्र से बहुत भेद है इसलिए उनके वस्तु रूप होने में शंका हो सकती है । पर जब एक वस्तुमें नाम और स्थापना हो तब भावके समान अथवा द्रव्य के समान वस्तु स्वरूप होने में शका नहीं हो सकती एक वस्तु का वाचक पद नाम है उसकी आकृति स्थापना है उत्तर काल में प्रकट होने वाले पर्याय का उत्पन्न करनेवाला स्वरूप द्रव्य है । कार्य रूपसे अभिव्यक्त स्वरूप भाव है । उदाहरण के लिए घट को लीजिए । घट अर्थका वाचक घट पद नाम है । घट का आकार स्थापना है, उत्तरवर्ती पर्यायों के उत्पन्न करने की शक्ति द्रव्य घट है, घट रूपसे अभिव्यक्ति भाव घट है, यहाँ पर भाव स्वरूप घट जिस प्रकार वस्तुरूप है, इस प्रकार भावी क्षणों में होने वाले पर्यायों की उत्पादक शक्ति घटसे भिन्न भिन्न होने के कारण वस्तु रूप है । यह शक्ति वर्तमान घट में प्रतोत हो रही है इसलिए वस्तु है, आकार भी घट में प्रतीत हो रहा है उसका भी घट के साथ अभेद है-अतः वह भी वस्तु सूप है, वर्णात्मक घट पद भी घट अर्थ के साथ प्रतोत होता है-अतः वह भी वस्तु है । घट अर्थ जिस प्रकार घट कहा जाता है
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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