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धर्मों के साथ संबंध होने के कारण उनमें मेद हो सकता है। वह इस प्रकार - स्थापना तो आकार, अभिप्राय, बुद्धि, क्रिया और फल के दिखाई देने के कारण नाम और द्रव्यसे भिन्न है। स्थापना इन्द्र में जिस प्रकार हजार नेत्र आदि आकार और स्थापना करनेवाले का सत्य इन्द्र का अभिप्राय, और द्रष्टा को उस आकार के देखनेसे इन्द्र की बुद्धि उत्पन्न होती है और भक्ति में परिणत बुद्धि वाले लोग नमस्कार आदि क्रिया करते हैं, और उसका फल पुत्र जन्म आदि देखा जाता है इस प्रकार नामेन्द्र और द्रव्येन्द्र में नहीं इसलिए उन दोनोंसे उसका मेद है।
विवेचना-जिन अर्थों में परस्पर विरोधी धर्म रहते हैं उनमें यदि कोई समान धर्म भी रहते हैं तो उनके कारण विरोधी पदार्थों का मेद दूर नहीं होता । लोह भारी है और तेज भार से रहित है, लोह उष्ण नहीं है परन्तु तेज उष्ण है इस प्रकार दोनों भिन्न हैं । जब अग्नि लोह में प्रविष्ट हो जाता है तो अग्नि के समान लोह भी दाह उत्पन्न करता है । दाह को उत्पन्न करना दोनों का समान धर्म है फिर भी लोह और अग्नि एक नहीं हो जाते । दोनों में भेद रहता है । इसी प्रकार अग्नि के संयोग से जल भी जलाने लगता है परन्तु जल और तेज भिन्न रहते हैं । लोह और जल के साथ जिस प्रकार तेज का संबंध है इस प्रकार नाम का नामवान् पदार्थ, स्थापना, और द्रव्य के साथ संबन्ध होता है, परन्तु इस संबंध के कारण नाम आदि एक नहीं हो जाते । इनके स्वरूप