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मेदको जानता है पर आकार के समान होने से चेतन गौ आदि का अचेतन काष्ठ आदि में आरोप करता है । एक अचेतन में भिन्न अचेतन का भी आरोप किया जाता है। वृक्ष पर्वत आदि के चित्र को वृक्ष और पर्वत समझकर व्यवहार चलता है इस प्रकार के व्यवहार का मूल स्थापना है । इस प्रकार की स्थापना सद्भाव स्थापना कही जाती है । आकार में समानता न होने पर जब भिन्न आकार के अर्थ में अभेद मान लिया जाता है तव असद्भाव स्थापना होती है । अक्ष आदि में जब जिनेन्द्रदेव आदि की स्थापना होती है तब असदभाव स्थापना होती है। जिनेन्द्र देव और अक्षों में आकार का साम्य किसी अंश में नहीं है। आकार समान नहीं है इसलिए अक्ष में देव की स्थापना को निराकार कहा है, अक्ष सर्वथा आकार शून्य नहीं है । यहाँ पर निराकार शब्द का आकार पद, समान आकार के लिए प्रयुक्त हुआ है।
ध्यान रखना चाहिए, स्थापना के लिए समान अथवा असमान आकार का होना आवश्यक नहीं है। किसी प्रकार का आकार न होने पर भी वस्तु में आकार का आरोप कर लिया जाता है। अकार इकार आदि वर्णों का कोई छोटा-बड़ा आकार न चक्षुसे दिखाई देता है और न त्वचासे छुआ जा सकता है। फिर भी अकार आदिके आकारों की कल्पना अनेक प्रकार के स्वरूपों में की जाती है और उसके द्वारा व्यवहार चलता है । वर्णों की भिन्न