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स्थिर रहता है तब तक स्वयं भी रहता है। मेरु, द्वीप, और समुद्र आदि नाम इसी प्रकार के हैं । जब तक मेरु आदि अर्थ रहते हैं तब तक ये नाम भी रहते हैं। अन्य नाम भिन्न प्रकार के हैं, देवदत्त आदि नाम इस प्रकार के हैं जो देवदत्त आदि अर्थों के रहने पर भी बदल जाते हैं। वस्तु के रहने पर भी नामों का परिवर्तन देखा जाता है। मूलम् :- यथा वा पुस्तकपत्रचित्रादिलिखिता वस्त्वभिधान
भूतेन्द्रादिवर्णावली। .. अर्थः- अथवा पुस्तक पत्र और चित्र आदि में लिखित
वस्तु की अभिधान स्वरूप इन्द्र आदि वर्गों की
पंक्ति भी नाम है। . विवेचन:-जब इन्द्र पद से स्वर्ग के अधिपतिका और ऐश्वर्य से रहित भृत्य आदि का बोध होता है तब वाचक और वाच्य का भेद स्पष्ट रहता है । कभी कभी इन्द्र पद का प्रयोग उन वर्गों के समुदाय में भी किया जाता है। जिनके समुदाय को इन्द्र कहा जाता है। इन् दुम इनका क्रम से समुदाय इन्द्र पद रूप है इसको भी इन्द्र कहा जाता है । इन्द्रका उच्चारण करो, इस प्रकार जब कहते हैं तब इन्द्र शब्द का वाच्य इन्द्र इतना वर्णों का समुदाय होता है। यह भी नाम निःक्षेप है । इस प्रकार के नाम निःक्षेप में वाच्य और वाचक का स्पष्ट भेद नहीं प्रतीत होता। यहाँ भी मुख्य अर्थ को उपेक्षा करके संकेत के कारण इन्द्र पद वर्गों के समुदाय का वाचक है ।